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ब्रांडेड दवा ना लिखे डॉक्टर और कंप्यूटर प्रिंट ही हो पर्ची में बीमारी और दवा : हाईकोर्ट


हल्द्वानी: हाईकोर्ट ने डाक्टर मरीज की पर्ची में दवा और बीमारी का नाम कंप्यूटर प्रिंट कराने के आदेश दिए है। अस्पतालों के पंजीकरण के मामले में हिमालयन और सिनर्जी अस्पताल की पुनर्विचार याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया है।। कोर्ट ने सरकार को जल्द ही जरूरी सामान चिकित्सालयों को उपलब्ध कराने को कहा गया है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने शुक्रवार को राज्य के सभी डाक्टरों( जिनमें सरकारी, सार्वजनिक और प्राइवेट क्लीनिक के डाक्टर शामिल) को निर्देश दिए कि वो मरीज की पर्ची में बीमारी का नाम और दवा का नाम कंप्यूटर से अंकित करें ताकि रोगियों को अपनी बीमारी और उससे संबंधित दवा के बारे में जानकारी आसानी से मिल सके। कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि इस मामले में वो जल्द से जल्द सरकारी मेडिकल आफिसर को कंप्यूटर व प्रिंटर की सुविधा उपलब्ध कराएं।  कोर्ट ने साफ किया कि डॉक्टर मरीज को दवा देते वक्त ब्रांडेड दवा के बजाय जेनेरिक दवाएं ही लिखे और इस आदेश को लागू करने में कम से कम समय लिया जाय।

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कोर्ट ने पूर्व आदेश में राज्य में बगैर लाइसेंस तथा क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट रजिस्ट्रेशन एक्ट 2010 के तहत पंजीकृत न हुए सभी अस्पतालों और क्लिनिक सील करने के आदेश दिया था। कोर्ट ने ब्रांडेड दवाएं लिखने पर रोक लगाई थी और जांच शुल्क निर्धारित करने के निर्देश दिए थे। इस आदेश में संशोधन के लिए हिमालयन हास्पिटल एसआरएचयू कैंपस जौली ग्रांट देहरादून व सिनर्जी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल हास्पिटल ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। बाजपुर निवासी अहमद नबी ने इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर  की थी। याचिका में बाजपुर में दोराहा स्थित बीडी अस्पताल तथा पब्लिक अस्पताल केलाखेडा बगैर पंजीकरण के संचालित होने की शिकायत की गई थी। आईएमए ने अनुरोध किया था कि पंजीकरण कराने का आदेश स्थगित कर दिया जाए।

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