देहरादून: प्रदेश की राजनीति में अचानक से बहुत कुछ घट गया। वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड की राजनीति पहले से ही ऐसी रही है। यहां कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। अब इस बार ही देख लीजिए ना, त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद कितने कयास लगाए जा रहे थे। मगर मुख्यमंत्री का पद उस नेता को मिला जिसका नाम कोसों कोसों दूर तक भी कोई नहीं ले रहा था।
लिहाजा वर्तमान में पौड़ी-गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत भाजपा के लिए हमेशा से एक भरोसे की कड़ी रहे हैं। हो भी क्यों ना, वह शिष्य भी तो पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के हैं। जानकार बताते हैं कि तीरथ सिंह रावत ने राजनीति के गुर भुवन चंद्र खंडूरी से ही सीखे हैं। वह आज भी पूर्व सीएम के काफी करीबी माने जाते हैं।
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आपका बता दें कि भुवन चंद्र खंडूरी भी तीरथ सिंह रावत को इतना करीबी मानते हैं कि 2019 लोकसभा चुनावों मेें जब पौड़ी-गढ़वाल सीट से तीरथ सिंह रावत के नाम पर हामी भरी थी। लिहाजा बड़ी बात यह है कि भुवन चंद्र खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी ही तीरथ सिंह रावत के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे। गुरु-शिष्य का यह रिश्ता इतना गहरा है कि 2019 में चुनाव जीतने के बाद तीरथ सिंह रावत ने कहा था कि मनीष खंडूरी उनके लिए हमेशा भाई की तरह ही रहेंगे।
लाजमी है कि भाजपा ने तीरथ सिंह रावत पर भरोसा ना सिर्फ उनकी कर्तव्यनिष्ठा और कार्यशैली के लिए दिखाया है बल्कि उनका शांत स्वभाव और लोगों का नेता होने की उनकी छवि ने भी उन्हें कुर्सी तक पहुंचाने में काफी मदद की है।
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