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नीम करोली बाबा की चमत्कारी शक्तियों ने बदली हार्वर्ड के प्रोफेसर की जिंदगी

नैनीताल: रविवार को अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और विख्यात मनोचिकित्सक डा. एल्पर्ट रामदास का निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनकी कामयाबी की तमाम बातें मीडिया हाउस द्वारा प्रकाशित की जा रही है। डा. एल्पर्ट रामदास का जीवन बदलने में भारत देश का काफी बड़ा हाथ रहा है। साल 1967 में वह भारत दौरे में आए और उनका जीवन बदल गया। इसी दौरान उनकी मुलाकात बाबा नीम करोली महाराज से हुई और उसके बाद उनका जीवन उडान की तरफ बढ़ता चला गया। डा. एल्पर्ट का जन्म 1931 में हुआ। उच्च शिक्षा के बाद वह कैलिफोर्निया और वर्कले विवि में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। फिर हार्वर्ड विवि में स्थाई रूप से मनोविज्ञान के प्रोफेसर बने । साल 1963 में उन्होंने हार्वर्ड विवि से इस्तीफा दे दिया।

कहा जाता है कि डा. एल्पर्ट अपनी मां को बहुत प्यार करते थे। मां के निधन से वह बहुत बेचैन हो गए थे। रात में वह तारों की तरफ देखकर यही सोचते रहते थे कि इन्हीं में से एक तारा उनकी मां भी है।एल्पर्ट रामदास ने अपनी आत्मकथा में इस बात को भी उजागर किया है। बाबा ने पहली मुलाकात में मां से प्यार और उनकी तलाश के बारे में डॉ. एल्पर्ट को बता दिया। इस पर डा. एल्पर्ट बाबा जी के गले लगकर खूब रोये। बाबा जी से मिलने के बाद उन्हें असीम शांति का अनुभव हुआ। इसके बाद प्रो. एल्पर्ट ने बाबा जी को अपना गुरु बना लिया।

बाबा से शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह करीब डेढ़ साल तक बाबा जी के सानिध्य में रहे। उन्होंने दीक्षा ली और योग आदि के भी गुण सीखे। उन्होंने हिंदू धर्म अपनाने के साथ ही हिंदू धर्म के बारे में काफी अध्ययन किया। इसके बाद वह अमेरिका लौटे और उन्होंने अमेरिका में हनुमान फाउंडेशन, सेवा फाउंडेशन, नीम करोली बाबा की स्मृति में लव सर्व रिमेंबर फाउंडेशन स्थापित कर लोगों के स्वास्थ्य लाभ और अन्य तरह के सेवा कार्य करना शुरू कर दिया। एल्पर्ट रामदास द्वारा 15 किताबें लिखी गई हैं। कई पुस्तकें काफी विख्यात हैं। बाबा जी के बारे में उन्होंने मिरेकल ऑफ लव लिखी और यह पुस्तक काफी चर्चित रही है।

इस पुस्तक में बाबा से जुड़ी घटनाओं का वर्णन है। यह पुस्तक पहली बार 1979 में न्यूयॉर्क में प्रकाशित हुई। उसके बाद रामदास ने 1995 में पुस्तक का नया अंक दोबारा हनुमान फाउंडेशन के माध्यम से प्रकाशित किया। इस बीच एल्पर्ट रामदास को अमेरिका में कई पुरस्कार भी मिले हैं। साल 1996 में अमेरिका में उन्होंने रेडियो टॉक कार्यक्रम हेयर एंड नाउ विद रामदास शुरू किया। साल 1997 में उन्हें लकवा पड़ गया जिससे उनका भ्रमण करना काफी कम हो गया लेकिन आखिरी दिनों में भी वह अपनी वेबसाइट आदि के जरिये हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए काम करने लगे।

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