उत्तराखंड:किसी समाज या उद्योग के सुचारु रूप से काम करने के लिये आवश्यक मूलभूत भौतिक एवं संगठनात्मक संरचना या आधारिक संरचना ही उस समाज की अर्थव्यवस्था की नीव होती है। ऐसे में यह बेहद आवश्यक है कि समाज को बनाने वाली महत्वपूर्ण भौतिक इमारतों का आधार मजबूत होना चाहिए। पर यह बेहद अफसोस की बात है कि भारत में इतनी हाईटेक मशीनें और अग्रिम साधन होने के बाद भी हमारे गाँवों में इमारतों की मजबूती आज भी सपना है। वहां लोगों के निजी घर तो फिर भी राम भरोसे हैं पर सरकारी स्कूलों की हालत तो ऐसी है कि जरा से झटके लगने पर उन इमारतों का एक हिस्सा भी उपयोगी ना रहे।
पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड में भूकंप की संभावनाए अधिक बनी रहती हैं।एक भूकंपीय भेद्यता मूल्यांकन शोध के अनुसार यहां के भूकंप संभावित क्षेत्रों के कुल 15036 सरकारी स्कूलों की इमारतों पर सर्वे किया गया जिसमें से 9700 स्कूली इमारतों की हालत खस्ता पायी गयी।यह संख्या साफ दर्शाती है कि लगभग 65 % स्कूल मेजर भूकंप आने पर तुरंत ढह जायेंगे।यह शोध ”उत्तराखंड के भूकंप संभावित प्रातों में सिस्मिक सुरक्षा के आर्थिक नियम”(‘Economics of seismic safety of school buildings in the earthquake prone province of uttrakhand ‘)नाम से किया गया था ।जिसे आपदा कंट्रोल एवं प्रबंधन सेंटर (DMMC)और उत्तराखंड आपदा रिकवरी प्रयोजन (URDP) ने मिलकर पूरा किया। यह प्रयोजन रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग टैक्निक के माध्यम से पूरा किया गया जिसमें लगभग पहाड़ी क्षेत्रों के 23% स्कूलों का सर्वे किया गया ।
शोध के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए आपदा कंट्रोल एवं प्रबंधन सेंटर (DMMC) के कार्यकारी प्रबंधक पीयूष रौतेला बताते हैं -‘हिमालयी क्षेत्र में भूकंप एक प्रमुख खतरा है।बीते 120 सालों में यहां ऐसी छह बड़ी आपदाओं ने दस्तक दी हुयी है, जिसमें 2015 में नेपाल भूकंप त्रासदी भी शामिल है।भूकंप की अधिकाधिक संभावना को चिह्नित करते हुए वे मानते हैं कि अगर पहाड़ी क्षेत्रों के इन स्कूलों के ऐसे ही हाल रहे तो आपदा से होने वाला नुकसान बेहद विकराल हो सकता है।यह नुकसान ना सिर्फ सम्पत्ति को हो सकता है बल्कि इन सरकारी स्कूलों में पड़ने वाले बच्चों को भी झेलना पड़ सकता है।यह नुकसान एक आर्थिक चिंता के साथ- साथ एक सामाजिक मुद्दा भी है।
पीयूष रौतेला कहते हैं कि स्कूल एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक संरचना है । अकसर किसी आपदा के बाद सरकारी स्कूलों में ही रिलीफ कैम्प,मेडिकल चैक-अप कैम्प, इत्यादी लगाये जाते हैं पर अब जब यहां के स्कूल ही नहीं टिकेंगे तो बाकी इंतजाम तो दूर की बात है।स्कूलों का इतनी आसानी से धरासायी होना प्रभावित समुदाय के लिए एक बड़ा आघात होगा ।शोध के मुताबिक हरिद्वार,बागेश्वर, पिथौरागढ़,और अल्मोड़ा के कईं जिलों में भूकंप आने की संभावना अधिक प्रबल हैं। (URDP) उत्तराखंड आपदा रिकवरी प्रयोजन के एक विशेषशज्ञ गिरीश जोशी कहते हैं -कि भूकंप का सामना होने पर पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक संख्या में स्कूली इमारतों का गिरना देश की आर्थिक स्थिति के लिए ठीक नहीं। अनुमानों के अनुसार ऐसे किसी भूकंप से सर्वे किए गये स्कूलों से होने वाले नुकसान को अगर मापा जाए तो देश को लगभग 1535 करोड़ रूपयों का नुकसान हो जाएगा ।
उनके अनुसार अगर भूकंपीय लचीलता को ध्यान में रखकर यहां निवेश किया जाये तो कुल 1443 करोड़ रूपये की लागत आ सकती है। परंतु अगर इस जरूरत को नजरअंदाज कर दिया गया तो सर्वे किये गये सरकारी स्कूलों के वर्तमान मूल्य (जो लगभग 91 करोड़ है) का भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसीलिए यह बेहद जरूरी है कि ऐसी कमियों का पता लगने पर काम समयबद्ध और नियोजित हो। कुछ बिल्डिंग बायलॉज में संशोधन किए जाने चाहिए और कड़े तरीके से उन नियमों को पालन किया जाना चाहिए ।