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पर्यावरण संरक्षण का त्यौहार है हरेला, जानें पूरा इतिहास जिससे जुड़ी है करोड़ो लोगों की आस्था


इसके बाद प्रत्येक दिन हरेले में पूजा के बाद गंगाजल छिड़का जाता है . इस कार्य को परिवार के बड़े-बुजुर्ग ही करते हैं . हरेला बोने के ऑठवें या नवें दिन कुछ स्थानों में डिकारे बनाने की भी परम्परा है . जिसमें गेरु ( लाल मिट्टी ) से शिव – पार्वती , गणेश , कार्तिकेय , नंदी यानि कि शिव परिवार की प्रतिमाएँ प्रतीक स्वरुप बनाई जाती हैं . जिसके बाद इनकी पूजा की जाती है . जिसके हरकालिका पूजन कहा जाता है . उसके बाद नवें या दसवें दिन अर्थात् सावन के पहले दिन ( संक्रान्ति को ) पूजा-अर्चना के बाद मंत्रोच्चार के साथ सम्पूर्ण हरेले की कटाई की जाती है . उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में सौरपक्षीय पंचॉग लागू होता है . इसी कारण यहॉ संक्रान्ति के दिन से नए महीने की शुरुआत होती है , जबकि मैदानी क्षेत्रों में चन्द्र पक्षीय पंचॉग लागू होने से वहॉ नया महीना पूर्णिमा के दिन से शुरु होता है . इसी कारण से उत्तराखण्ड में सावन ( श्रावण मास ) का महीना संक्रान्ति ( हरेले के त्योहार ) से प्रारम्भ होता है . इसके बाद परिवार के सभी सदस्य अपने से छोटों के सिर में हरेले के तिनणों को निम्न आशीष के साथ रखते हैं – ” जी रैया जागि रैया , य दिन , य बार , य मॉस भ्यटन

 

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