भवाली:नीरज जोशी: उत्तराखण्ड को हमेशा से देवो की नगरी के नाम से जाना जाता रहा है। क्योंकि यहां हमेशा से संत महात्माओं ने रहकर ऊँचे पहाड़ो और चोटियों में सालों तक तपस्या कर देवताओ को प्रसन्न किया है। तभी आज भी पहाड़ों में लोग अपने कुल देवता और ईष्ट देव की पूजा किया करते है। देवों के खुश होन का कारण संत महात्माओ का वर्षो से पहाड़ो में जाप- तप करके भगवान को खुश करना है।
मंगलवार को भीमताल पद्मपुरी में सोमवारी महाराज के आश्रम में उनके भक्त इतवारी महाराज की 28वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हवन और भण्डारे का आयोजन किया गया। भीमताल पद्मपुरी में 100 साल पुराने सोमवारी महाराज के आश्रम में उनके भक्त की 28 वी पुण्य तिथि मनाई गई। दूर दराज से आकर भक्तों ने भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण किया। स्थानीय स्कूली बच्चों ने भी भंडारे में आकर प्रसाद ग्रहण किया और बाबा का आशिर्वाद लिया। भजन कीर्तन कर बाबा को याद किया।
इतवारी महाराज के भक्तों का कहना था कि वो हर साल बाबा की पुण्य तिथि मनाते है और हवन कर उनकी आत्मा की शान्ति के लिए भव्य भंडारे का आयोजन करते है। उनका कहना था की इतवारी महाराज ने अपने जीते जी समाज व लोगो की ख़ुशी के लिए कई वर्षो तक-जप तप और यज्ञ किये है ।अब हमारी बारी है कि उनके अच्छे कामों को याद कर उनकी आत्मा को प्रसन्न करें। उत्तराखण्ड का अस्त्तिव सोमवारी व इतवारी जैसे महाराज के कारण ही पूरे विश्व में विख्यात है।
हमें उत्तराखंड अगर बचाना है तो संत महात्माओ को जीवित रखना होगा। ताकि एक सुन्दर उत्तराखंड का निर्माण हो सके और पूरे देश में उत्तराखंड को देवो की नगरी के नाम से लोग जान सके। उन्होंने कहा इतवारी महाराज तो अपना देह त्याग दिया था परन्तु उनका मत था कि हमेशा सच की राह में चलना ही हर मनुष्य का कर्तव्य है। तभी मनुष्य प्रगति के मार्ग पर चल सकता है। छल और कपट के मार्ग में जो चलता है उसे कुछ आनंद की अनुभूति तो हो सकती है परन्तु वः भूल जाता है की वो माया के जाल में फंस गया है। जो आनन्द प्रभु के नाम व सच के रास्ते में चलता है उसका चरित्र हर वक्त समाज के लिए लाभदायक रहता है।