खटीमा: भारतीय जनता पार्टी ने बीते दिन प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। भाजपा ने पांचवीं विधानसभा के लिए अभी 59 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की है। जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खटीमा की विधानसभा सीट से ही टिकट दिया गया है। गौरतलब है कि उन्होंने अपने ही क्षेत्र से लड़ने का ऐलान किया था।
विधानसभा चुनाव के आगमन से पहले एक ऐसे मिथक की चर्चा करना बहुत जरूरी है, जो भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को परेशान कर सकता है। हालांकि सीएम धामी के पास चुनौतियों के साथ-साथ इतिहास रचने का भी शानदार मौका है। दरअसल उत्तराखंड में अब तक 4 बार विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए हैं जिसमें 2 बार भाजपा तो दो बार कांग्रेस ने सरकार बनाई है।
दरअसल उत्तराखंड में मुख्यमंत्री रहते हुए आखरी बार भगत सिंह कोश्यारी ने विधानसभा चुनाव जीता था। उन्होंने अंतरिम सरकार के सीएम रहते हुए साल 2002 में कपकोट विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। मुख्यमंत्री से जुड़ा मिथक ये है कि अब तक हुए 4 विधानसभा चुनावों में एक भगत सिंह कोश्यारी को छोड़कर मुख्यमंत्री रहते हुए जिस भी राजनेता ने चुनाव लड़ा उसे हार का सामना करना पड़ा है।
आप चाहे पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी की बात कर लें या फिर कांग्रेस के हरीश रावत की। दोनों को मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। बता दें साल 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने खंडूरी है जरूरी का नारा दिया था। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूड़ी को कोटद्वार विधानसभा सीट से हार मिली थी। वहीं 2017 में कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। मगर हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा, दोनों सीटों से चुनाव हार गए थे।
इसी कड़ी में अब पुष्कर सिंह धामी भी मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कुछ समय पहले तक यह चर्चा थी कि वह खटीमा की जगह डीडीहाट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन उन्होंने खुद ही खटीमा से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें खटीमा से टिकट दिया है। बता दें धामी खटीमा से पिछले 10 साल से विधायक बनते आ रहे हैं। देखना रोचक होगा कि क्या पुष्कर सिंह धामी लगातार तीसरी बार खटीमा से विधायक बनकर मुख्यमंत्री से जुड़े इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।