हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जो तेज़ी से डिजिटल होता जा रहा है, लेकिन जुड़ने, साथ वक्त बिताने और संपर्क में रहने की जैसी इंसानी ज़रूरतें अब भी जस की तस बनी हुई है। हालांकि, जैसे-जैसे पब्लिक स्पेस कम हो रहे हैं और ‘थर्ड प्लेस’ (जैसे कैफ़े या पार्क) दुर्लभ होते जा रहे हैं, हमारे मिलने-जुलने के तरीके भी काफ़ी बदल गए हैं। अब पड़ोस का पार्क या कैफ़े नहीं, बल्कि स्मार्टफोन की स्क्रीन ही नई मीटिंग ग्राउंड बन गई है, और गेम लॉबी अब वो जगह है जहां लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
यह बदलाव गेमिंग इंडस्ट्री के हालिया आंकड़ों में साफ़ दिखता है। भारत में गेम खेलने वाले लोगों की संख्या हाल ही में 59.1 करोड़ तक पहुंच गई है, जिनमें से बड़ी संख्या रोज़ाना खेलने वालों की है। ये लोग गेमिंग ऐप्स पर अकेले टाइम पास करने के लिए नहीं, बल्कि डिजिटल दुनिया में जुड़ाव महसूस करने के लिए खेलते हैं। rummy games और अन्य कैज़ुअल गेमिंग ऐप्स अब वो ‘थर्ड प्लेस’ बन गए हैं, जहा लोग आकर मानव जुड़ाव को ज़िंदा रखते हैं।
एक हालिया CMR सर्वे के मुताबिक़, 41% भारतीय स्मार्टफोन यूज़र गेम इसलिए खेलते हैं ताकि वे सोशलाइज़ कर सकें। Gen-Z और मिलेनियल्स अब वीडियो गेम्स में असल ज़िंदगी से ज़्यादा लोगों से बातचीत करते हैं।
प्लेटाइम है नया प्राइमटाइम
शायद कोई भी चीज़ आमने-सामने की बातचीत को पूरी तरह से रिप्लेस नहीं कर सकती, लेकिन टेक्नोलॉजी में पले-बढ़े इस पीढ़ी के लिए ये डिजिटल मीटअप्स भी काफ़ी मायने रखते हैं। महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन जैसे हालातों ने इस चलन को और तेज़ी से बढ़ाया।
अब गेमिंग एक आदत बन चुकी है, और कैज़ुअल गेम्स युवा भारतीयों की रोज़मर्रा की दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं। भारत में कई पुरुष और महिलाएं रोज़ाना गेम खेलते हैं। खास तौर पर Gen-Z के लिए गेमिंग अब केवल टाइम पास नहीं, बल्कि एक नियमित सोशल एक्टिविटी है। इस पीढ़ी के 74% गेमर्स हर हफ्ते कम से कम छह घंटे मोबाइल गेम्स खेलते हैं, छोटे-छोटे ब्रेक्स में, ठीक वैसे ही जैसे कोई पड़ोस में घूमने या मिलने जाता है।
ये गेमिंग सेशन भी तय समय पर होते हैं, जैसे कि दफ्तर या स्कूल के बाद का मिलना-जुलना। मोबाइल गेमिंग का प्राइम टाइम शाम 7 से 9 बजे के बीच होता है। एशिया-पैसिफिक रीजन (जिसमें भारत भी शामिल है) में शाम 7 बजे के आस-पास गेमिंग एक्टिविटी सबसे ज़्यादा होती है।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि रोज़ाना गेम खेलने का मतलब घंटों तक खेलते रहना नहीं है। ज़्यादातर सेशन दो घंटे से कम के होते हैं। एक तरह से ये “माइक्रो-सेशन” हैं, जो किसी free rummy game या शाम को दोस्तों के साथ बैठने जैसे होते हैं।
प्राइवेट रूम्स, पब्लिक चैट्स और नए डिजिटल अड्डे
अब गेमिंग ऐप्स में कई सोशल फीचर्स हैं जो पुराने जमाने के नोटिस बोर्ड्स या पार्क की बेंचों की तरह काम करते हैं। इन-गेम चैट बॉक्स, फ्रेंड लिस्ट, टीम मोड, फ्रेंड इनवाइट्स और प्राइवेट रूम्स – ये सभी फीचर्स गेम्स को एक तरह का सोशल नेटवर्क बना देते हैं।
उदाहरण के लिए, भारत में लोकप्रिय कई रम्मी गेम्स खिलाड़ियों को मैच के दौरान बातचीत की सुविधा देते हैं, बिलकुल वैसे जैसे असली कार्ड गेम में ‘टेबल टॉक’ होती है। ऐप्स जैसे कि गेम्सक्राफ्ट की रम्मीकल्चर (RummyCulture) दोस्ती को बढ़ावा देते हैं। खिलाड़ी अपने दोस्तों को इनवाइट कर सकते हैं या प्राइवेट टेबल्स पर साथ खेल सकते हैं।
जिन गेम्स में हाई-इंटेंसिटी होती है, वहां ये सोशल फीचर्स और भी गहराई से UX डिज़ाइन में शामिल किए गए हैं। जैसे कि बैटलग्राउंड्स मोबाइल इंडिया (BGMI) या अन्य स्ट्रैटेजी गेम्स में स्क्वाड मोड होता है, जिसमें टीमवर्क और वॉइस कम्युनिकेशन जीतने की कुंजी हैं। दोस्त स्क्वाड बनाकर रोज़ रात को इन-गेम मिलते हैं और साथ चैलेंजेज़ पूरा करते हैं।
इन फीचर्स के चलते गेमिंग और सोशल मीडिया के बीच की लाइन दिन-ब-दिन धुंधली होती जा रही है। CyberMedia Research की सीनियर एनालिस्ट सुगंधा श्रीवास्तव कहती हैं, “हम गेमिंग बिहेवियर में स्पष्ट बदलाव देख रहे हैं, कैज़ुअल प्ले से लेकर ज़्यादा इमरसिव, सोशली कनेक्टेड और कॉम्पिटेटिव फॉर्मैट की ओर।”
सोशल गेमिंग के दौर में रम्मी की वापसी
इस सोशल गेमिंग बूम के बीच, ऑनलाइन रम्मी गेम्स भारत में बेहद लोकप्रिय और सोशली रिच pastime बनकर उभरे हैं। जो रम्मी कभी खाने की टेबल या पिकनिक पर खेली जाती थी, वो अब वर्चुअल टेबल्स पर मोबाइल ऐप्स के ज़रिए जी उठी है।
रम्मीकल्चर (RummyCulture), जो भारत के टॉप फ्री रम्मी गेम प्लेटफ़ॉर्म्स में से एक है, उसका यूज़र बेस 2024 में 3.3 करोड़ (33 मिलियन) तक पहुंच गया। यह एक बड़े गेमिंग समुदाय का हिस्सा है, जिसमें 155 मिलियन से अधिक प्लेयर रियल-मनी गेम्स (RMG) में हिस्सा लेते हैं। इन सब में से एक बड़ा हिस्सा रम्मी गेम्स से आता है, जो ट्रस्ट के साथ-साथ प्रतिद्वंद्विता भी देते हैं। डिजिटल गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म्स में अब कई सिक्योरिटी फीचर्स होते हैं – जैसे कि ISO 9001, RNG सर्टिफिकेशन, और anti-cheat प्रोटोकॉल्स।
अगर आपको यह समझना है कि रम्मी कैसे एक बड़ा डिजिटल सोशल अड्डा बन गया है, तो बस रम्मीकल्चर के “Sunday Mega Blockbuster” इवेंट को याद करिए। इस इवेंट में 2.15 लाख से ज़्यादा गेमर्स ने एक साथ खेला – जो दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन रम्मी टूर्नामेंट बन गया और Guinness World Record में दर्ज हुआ। ये इवेंट्स किसी डिजिटल त्योहार की तरह होते हैं – जहां चैट रूम्स में गहमागहमी रहती है, दोस्त साथ खेलते हैं या एक-दूसरे से टकराते हैं, और उत्साह सामूहिक होता है।
एक नई डिजिटल दुनिया में इंसानी जुड़ाव की नई मैपिंग
भले ही स्क्रीन अब फर्स्ट इंटरफेस बन गया हो, लेकिन साझा स्पेस की ज़रूरत आज भी उतनी ही सजीव है। “आपके दोस्त ऑनलाइन हैं” जैसे नोटिफिकेशन असल ज़िंदगी के “चलो कॉफ़ी पर मिलते हैं” जैसे इशारे बन चुके हैं। आज जुड़ाव अब लोकेशन से तय नहीं होता, बल्कि प्रेजेंस से होता है – और वो प्रेजेंस अब बस एक क्लिक दूर है।
कई Gen Z गेमर्स मानते हैं कि ऑनलाइन इंटरैक्शन का भावनात्मक महत्व आमने-सामने की बातचीत जितना ही होता है। ये वर्चुअल लाउंज, जहां महिलाएं, बुज़ुर्ग और युवा सब शामिल होते हैं, किसी community के विकल्प नहीं हैं – ये खुद community बन चुके हैं। यह दिखाता है कि जुड़ाव की भावना आज भी जिंदा है – बस उसका नक्शा डिजिटल हो गया है।
