Editorial

कक्षा दो में था जब सचिन को पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते देखा था: पंकज पांडे


हल्द्वानी: बचपन से क्रिकेट का शौक रहा है। इसी लिए खेल के बारे में लिखना ज्यादा लिखना पसंद है। साल 2003 मेरा पहला विश्वकप था। दूसरी क्लास में था और पेपर चलने वाले थे। भारत-पाकिस्तान के मैच की केवल बातें सुनी देखा नहीं था। देखा भी होगा तो याद नहीं है। साल 2003 विश्वकप के बाद से क्रिकेट के प्रति पागलपन और बढ़ गया। ऐसा पागलपन भारत के अधिकतर मैच याद है। क्रिकेट के प्रति प्यार के कारण ही पत्रकारिता में जुड़ा। घर वालों ने क्रिकेट खेलने नहीं दिया तो सोचा माइक के सहारे ही गेम को इंजॉय करूं।

भारत-पाकिस्तान मैच 1 मार्च 2003, क्या माहौल था। सड़कों पर लोग तिरंगे को हाथ में लेकर भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। साल 2019 का माहौल भी कुछ ऐसा ही है। उस वक्त क्रिकेट के  लिए और अभी हमारे फौजियों के लिए। भारत पहले फिल्डिंग कर रहा था, जो मैंने सोचा था। जहीर खान अतिरिक्त रन काफी दे रहे थे लेकिन बीच-बीच में विकेट भी गिर रहे थे। कहने को शहीद अनवर ने शतक बनाया लेकिन मुझे इस शतक ने काफी बोर किया। जब बड़ा हुआ तो पता चला ये खिलाड़ी कितना महान है। पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 7 विकेट पर 272 रन बनाए। इंडिया को जीत के लिए 273 रन चाहिए थे। इसी दौरान लाइट चले गई तो रेडियो ऑन कर दिया। और बीसीएसएनएल चौका वाला गाना पहली बार सुना था। वैसे वीरेंद्र सहवाग मेरे फेवरेट है, सचिन नहीं। उस दोनों भाइयों ने पाकिस्तान के गेंदबाजों की खूब खबर ली। वो डीप प्वाइंट पर अपरकट करते हुए दोनों के छक्के, ये मै सुन रहा था बस। जैसे ही लाइट आई और टीवी खोला तो सहवाग आउट।

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बहन ताली बजाने लगी क्योंकि उसे सचिन पंसद था और दोनों भाइयों को लेकर कई बार हम दोनों विश्वकप के दौरान हाथापाई कर चुके थे। सहवाग गए तो दादा भी पहली बॉल पर पवेलियन लौट गए। फिर लगा की द्रविंड आएंगे और केवल सचिन को खिलाएंगे। हां उन दिनों में हम दोस्त एक बात काफी करते थे वो कि पाकिस्तान का शोएब अख्तर हाथ घुमाकर गेंद नहीं फेकता है। मतलब भट्टा मारता है। खेर वो भी झूठ था। बल्लेबाजी करने उतरे मोहम्मद कैफ। इतनी तेज दौड़ते थे कि लगता था पेड  महंगे कागज के होंगे। थोड़ी ही देर बाद सचिन का एक कैंच छूट गया उसके बाद तो सचिन ने अपनी क्लास दिखाई और पाकिस्तान की लगाई। दोनों ने एक बार 4 रन दौड़कर ले लिए वो भी पहली बार देख रहा था। लाइट एक बार और गही और इस बार पापा ने रेडियों ऑन करने नहीं दिया। बोले थोड़ा पढ़लो, वैसे क्रिकेट के प्रति प्यार के लिए पापा ही जिम्मेदार है। घर में बोला गया था कि जिस मैच होगा उस दिन पंकज ना तो स्कूल जाएंगा ना पढ़ाई करेगा। थोड़ा पढ़ा अब दूसरी क्लास में थे कितना ही पढ़ना होता था। लाइट आई और कैफ भाई भी आउट हो गए। थोड़ा गुस्सा लाइट वालों पर आया कि जैसे आ रही है वैसे कोई आउट हो रहा है। कैफ भाई ने 35 रन बनाए।

सचिन तो ऐसे खेल रहे थे जैसे जिम्बावे के खिलाफ हो 75 गेंदों पर 98 रन बनाए थे। उस दिन फिटनेस परेशानी भी थी और सहवाग बतौर रनिंग के लिए आए थे। जैसे आए थे वैसे ही सचिन को अपने साथ पवेलियन ले गए। अख्तर की वो गेंद काफी अच्छी थी और युनुस खान का कैच भी। इसके बाद द्रविड़ जी और हमारे युवी भैया ने रही कसर पूरी कर ली और इंडिया 6 विकेट से मैच जीत गया। इसके बाद घर पर ऐसा माहौल था जैसे कोई दिवाली। इस तारीख को 16 साल बीत गए हैं लेकिन अभी यह मैच दिल से नहीं उतरा है, शायद ये मेरे क्रिकेट देखने का डेब्यू था।

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