हल्द्वानी: शासन, प्रशासन या आमजन अधिकतर ही इंसानों की सुविधाओं को बेहतर करने की की बात करते हैं या इस ओर काम करते हैं। अन्य जीव जंतुओं की तरफ ज़्यादातर हर किसी का ध्यान नहीं जाता। मगर समय समय पर ऐसे दृश्य सामने आते हैं जिन्हें देख कर लगता है कि इंसान भी परवाह करता है, जानवरों के प्रति उदार भाव रखता है। ऐसा ही एक दृश्य कालाढूंगी – नैनीताल मार्ग से सामने आया है।
रेप्टाइल्स वर्ग के जीवों के लिए इसी मार्ग पर एक ईको ब्रिज बनाया गया है। इस ब्रिज को स्थानीय स्तर के साथ साथ विश्व स्तर पर भी खासा कवरेज मिल रही है। अमेरिका, जर्मनी, चीन, जिम्बाब्वे के अख़बारों में काफी सुर्खियां बंटोर रहा है बांस, जूट और घास की मदद से बनाया गया यह ईको ब्रिज। इस पुल को रामनगर वन विभाग ने बना कर तैयार किया है।
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कालाढूंगी क्षेत्र के रेंजर अमित गवास्कोटी ने जानकारी दी और बताया की पुल का निर्माण 15 नवंबर से 30 नवंबर तक चला। बता दें कि इस ब्रिज को जीव जंतुओं की सुविधा के लिए बनाया गया है। इसके अलावा पुल के दोनों किनारों पर कैमरे लगाए गए हैं, जिससे जीवों की आवाजाही पर नजर रखी जा सके। यह पुल तैयार होने के बाद से ही लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र और सेल्फी सेंटर बन गया है। विभाग का मानना है कि बहुत जल्द जीव जंतु भी इस पुल का सहारा लेना शुरू कर देंगे। इसे एक ऐसे बिंदु के पास बनाया गया है, जहां से आगे की सड़क एक यू-आकार के ढलान की ओर जाती है।
इस ब्रिज की लंबाई 90 फीट, चौड़ाई 5 फीट है जबकि ऊंचाई लगभग 40 फुट है। पुल तीन वयस्क मनुष्यों का वजन ढो सकता है। कालाढूंगी के रेंजर ने यह भी बताया कि इस ब्रिज को तैयार करने में कुल दो लाख रुपए खर्च हुए हैं। पुल के बनने के पीछे का कारण जीव जंतुओं की ज़िन्दगी को बचाना है। दरअसल जंगल से बाहर आते रेप्टाइल्स अक्सर गुजरते वाहनों के नीचे कुचल दिए जाते हैं। ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि कितने ऐसे जीव अभी तक कुचले जा चुके होंगे, लेकिन वन कर्मचारियों को गश्त के दौरान अधिकतर ही इस वर्ग के तमाम जीव मरे दिख जाते हैं।
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अमेरिका के यूएस टुडे, जिम्बाब्वे के न्यू जिम्बाब्वे, जर्मनी के डीपीए इंटरनेशनल, चीन के ग्लोबल टाइम्स ने इस अनोखे ईको ब्रिज को अपनी सुर्खियों में काफी सराहा है। विदेशी मीडिया में उत्तराखंड और कालाढूंगी, नैनीताल का नाम खासा प्रचलित हो रहा है। साथ ही मीडिया यहां के वन विभाग की तारीफ करते नहीं थक रही है।
रामनगर वन विभाग के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी ने दी जानकारी। उन्होंने बताया कि फरवरी-मार्च में शासन को इस पुल निर्माण का प्रस्ताव बनाकर भेजा था। शासन की मंजूरी मिलते ही इसके निर्माण कार्य शुरू कर दिए गए थे, जो कि 30 नवंबर तक चले। उन्होंने बताया कि विदेशी मीडिया ने इस ब्रिज को अपनी सुर्खियों में लिया है, यह हमारे उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है। राज्य में इस तरह का ब्रिज अनूठा और पहला है। डीएफओ ने बताया कि इस पुल का निर्माण मुख्य तौर पर सरीसृपों जैसे सांप, छिपकली और नेवले को सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए कराया गया है।