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स्थानीय टूर्नामेंट से राष्ट्रीय प्रसिद्धि तक: भारत के छोटे शहरों के गेमर्स का उदय

भारत की गेमिंग क्रांति अब नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती। कभी सिर्फ़ कुछ शहरी शौकीनों तक सीमित रहे प्रतिस्पर्धी गेम्स और मनोरंजन के लिए खेले जाने वाले खेल अब राष्ट्रीय लीडरबोर्ड्स और स्ट्रीमिंग चार्ट्स तक पहुँच चुके हैं। इस बदलाव के केंद्र में छोटे शहरों से उभरते नए गेमर्स की एक नई लहर है।

टियर-2 और टियर-3 शहरों से आने वाले युवा गेमर्स प्रेरणादायक सफलता की कहानियों के साथ सुर्खियों में अपनी जगह ना रहे हैं। बेहतर इंटरनेट सुविधा, क्षेत्रीय प्रतियोगिताएँ और स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध प्लेटफ़ॉर्म जैसे कई कारण उन्हें सशक्त बना रहे हैं। साथ ही, खास क्रिएटर टूल्स भी हैं जो उन्हें rummy game जैसे खेलों में अपनी कला निखारने, स्थानीय प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ने और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में मदद करते हैं।

भारत के छोटे शहर: ऑनलाइन गेमिंग के नए केंद्र

भारत में गेमिंग की बढ़ती लोकप्रियता का श्रेय सिर्फ़ महानगरों को नहीं, बल्कि उनसे आगे के क्षेत्रों को भी जाता है। खासकर ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर, जो 2029 तक $9.1 बिलियन से ज़्यादा मूल्य का हो सकता है। इस विकास की मुख्य ताकत टियर-2 और टियर-3 शहरों से आने वाले प्रतिभागी हैं। अगर हम इस हालिया बदलाव पर गहराई से नज़र डालें, तो साफ़ होता है कि कई अनुकूल कारकों ने मिलकर इसे संभव बनाया है।

इस सूची में सबसे ऊपर हैं किफायती स्मार्टफोन और डेटा प्लान्स। लगभग5,000 की कीमत वाले मोबाइल डिवाइस और150 या उससे भी कम मासिक दर पर उपलब्ध डेटा के चलते उपनगरीय इलाकों के खिलाड़ी ऑनलाइन गेम्स तक आसान और समान रूप से पहुँच बना पा रहे हैं। गेमिंग ऐप्स में स्थानीय भाषाओं की उपलब्धता भी एक अहम कारक है। पहले, केवल अंग्रेज़ी-आधारित ऐप्स से कई उपयोगकर्ता कटे हुए महसूस करते थे, लेकिन अब डेवलपर्स गेम्स, ट्यूटोरियल्स और सपोर्ट को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराने लगे हैं। इसका मतलब है कि अकोला का एक किशोर पूरी तरह मराठी में 13-पत्ती रम्मी गेम सीख सकता है, जबकि नेल्लोर का एक खिलाड़ी तेलुगु में सपोर्ट करने वाले इंटरफेस को आसानी से चला सकता है।

साथ ही, कुछ गेम्स छोटे शहरों के गेमर्स के साथ गहराई से जुड़ते हैं क्योंकि वे सांस्कृतिक रूप से उनके लिए परिचित होते हैं। अब पारंपरिक भारतीय खेल जैसे कि RummyTime rummy app लूडो, शतरंज और अन्य कार्ड-आधारित कौशल वाले गेम्स ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं। भारत के छोटे शहरों को ऑनलाइन गेमिंग का गढ़ बनाने में आर्थिक प्रगति भी एक अहम भूमिका निभा रही है। छोटे शहरों में बढ़ती आमदनी का मतलब है कि अब ज़्यादा लोग डेटा टॉप-अप प्लान, टूर्नामेंट की एंट्री फीस या इन-ऐप खरीदारी जैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं।

गाँव के टूर्नामेंट से राष्ट्रीय लीग तक: एक लंबी छलांग

इससे पहले कि भारत में ई-स्पोर्ट्स एरेना और लाइव-स्ट्रीम किए जाने वाले फाइनल्स आम हो जाएँ, देश की गेमिंग दुनिया की जान थे वे साधारण स्तर के स्थानीय टूर्नामेंट। ये छोटे पैमाने की प्रतियोगिताएँ—जो कैफे, कॉलेज फेस्ट्स और कम्युनिटी हॉल्स में आयोजित होती थीं—वहीं से कई आज के मशहूर गेमर्स ने पहली बार भाग लेने और जीतने का रोमांच महसूस किया था। इन टूर्नामेंट्स की पुरस्कार राशि बेहद कम होती थी—कभी सिर्फ़ वाहवाही, तो कभी-कभी कुछ सौ या हजार रुपये। और स्पॉन्सरशिप तो लगभग न के बराबर होती थी।

हालांकि अब, 2020 के दशक में यह स्पष्ट है कि जमीनी स्तर की प्रतियोगिताएँ न केवल संख्या में बढ़ी हैं, बल्कि उनके दायरे और स्तर में भी जबरदस्त विस्तार हुआ है। छोटे शहरों के गेमर्स के पास अब शहर-स्तरीय ओपन टूर्नामेंट्स, कैंपस सर्किट्स, राज्य स्तर की प्रतियोगिताएँ और राष्ट्रीय लीग्स जैसे ढेरों अवसर उपलब्ध हैं।

कॉरपोरेट और संस्थागत समर्थन भी अब जमीनी स्तर तक पहुँचने लगा है, जहाँ बड़ी कंपनियाँ अब ऐसे टूर्नामेंट टूर और प्रतियोगिताएँ आयोजित कर रही हैं जिनमें गैर-मेट्रो क्षेत्रों के खिलाड़ी भी शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में Gameskraft की RummyCulture ने सबसे बड़े ऑनलाइन रम्मी टूर्नामेंट के लिए गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, जिसमें 2.15 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसके बाद, 2024 में KRAFTON ने एक महत्वाकांक्षी Esports Campus Tour की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भारत के छोटे शहरों के कॉलेजों में प्रतियोगिताएँ आयोजित करना था।

इन सामूहिक प्रयासों का यह परिणाम है कि 2025 में किसी छोटे शहर का प्रतिभाशाली गेमर खोजे जाने और समर्थन पाने के मामले में 2015 की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति में है।

छोटे शहरों से निकले बड़े नाम

प्रतिभा की यह श्रृंखला लगातार फैलती जा रही है। गेमर्स अब खुद को स्ट्रीमर, गेम गुरु और इन्फ्लुएंसर के रूप में नया रूप दे रहे हैं — जो अपनी ऑनलाइन कम्युनिटी में हीरो बन चुके हैं। सोलन, हिमाचल प्रदेश के साहिल राणा (जिन्हें AS Gaming के नाम से जाना जाता है) की कहानी इस क्षेत्र की शुरुआती सफलताओं में से एक है। राणा ने मोबाइल गेम्स के मज़ेदार वीडियो अपलोड करने शुरू किए, और 18 साल की उम्र तक ही उन्होंने यूट्यूब पर एक बड़ी फैन फॉलोइंग बना ली थी। आज उनके चैनल के 2 करोड़ से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स हैं।

सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के अमित शर्मा और बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के आकाश कुमार भी देसी गेमर्स की उस चमकदार फेहरिस्त में शामिल हैं जिन्होंने बड़ी सफलता हासिल की है। अमित शर्मा एक बेहद लोकप्रिय यूट्यूब गेमिंग चैनल चलाते हैं, जिसके 1.6 करोड़ से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। वहीं आकाश कुमार की पहचान उस समय राष्ट्रीय स्तर पर बनी जब उन्होंने एक ऑनलाइन रम्मी प्रतियोगिता में1 करोड़ का इनाम जीता।

इस तेज़ी से बढ़ते इंडस्ट्री में महिलाएँ भी शीर्ष पर पहुँच रही हैं, और इसका बेहतरीन उदाहरण हैं पायल धरे की कहानी। ‘Payal Gaming’ के नाम से ऑनलाइन मशहूर, पायल मध्य प्रदेश के उमरानाला गाँव से ताल्लुक रखती हैं। शुरुआत में उन्हें अपने गेमिंग जुनून को लेकर काफी संदेह और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज उनके यूट्यूब चैनल के 40 लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स हैं, और वह भारत की सबसे लोकप्रिय महिला गेमिंग क्रिएटर बन चुकी हैं।

मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म: एक बड़ी बराबरी का जरिया

इन सभी सफलता की कहानियों को संभव बनाया है भारत में आई मोबाइल-फर्स्ट गेमिंग क्रांति ने। स्मार्टफोन ने छोटे शहरों के गेमर्स के लिए मैदान बराबर कर दिया है, क्योंकि इसके लिए महंगे शहरी हार्डवेयर की ज़रूरत नहीं होती। क्लाउड गेमिंग के बढ़ते चलन और हल्के गेमिंग ऐप्स की उपलब्धता ने भी देशभर में हाई-एंड गेम्स को कहीं ज़्यादा सुलभ बना दिया है।

जो गेमर्स अब कंटेंट क्रिएटर बन चुके हैं, उनके लिए आज ढेरों क्रिएटर टूल्स उपलब्ध हैं जो उनकी इस यात्रा को और आसान बना रहे हैं। इन टूल्स की मदद से नए गेमर्स बेहद साधारण सेटअप में—अक्सर सिर्फ एक फोन के ज़रिए—अपने गेम्स का प्रसारण कर सकते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे ShareChat, Instagram और Moj ने भी छोटे शहरों के कई गेमिंग इन्फ्लुएंसर्स को अपने हाइलाइट्स बड़े दर्शकवर्ग तक पहुँचाने में मदद की है।

कुल मिलाकर, यही वो रास्ता है जिससे भारत के छोटे शहरों के गेमर्स आज गेमर होने की परिभाषा को नए मायनों में ढाल रहे हैं। वे इस क्षेत्र की कहानी को नए सिरे से लिख रहे हैं—और साबित कर रहे हैं कि बड़े सपने वाक़ई छोटे शहरों में भी पनप सकते हैं।

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