नैनीताल: प्रदेश में कोरोना के कारण बने हुए मौजूदा हालातों को लेकर हाईकोर्ट लगातार सक्रिय बना हुआ है। एक बार फिर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं। जिसमें टेस्टिंग की संख्या, ऑक्सीजन कोटा आदि बातों पर ध्यान देने को कहा है। साथ ही केंद्र से इन हालातों के लिए स्पष्टीकरण भी मांगा है।
हाईकोर्ट का कहना है कि उत्तराखंड का बहुत बड़ा हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र हैं। इसलिए वहां लगातार ऑक्सीजन की सप्लाई होते रहना अति आवश्यक है। इन निर्देशों में जहां हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को (आईसीएमआर को गाइडलाइंस के अनुसार) कम टेस्ट ना करने की चेतावनी दी है तो वहीं केंद्र सरकार को कुछ मांगें याद दिलाई हैं। जो राज्य के हिसाब से पूरी होनी ही चाहिए।
हाईकोर्ट ने क्या कहा
1. केंद्र सरकार राज्य सरकार के लिए ऑक्सीजन का कोटा 183 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 300 मीट्रिक टन किए जाने पर गंभीरता से सोचे।
2. केंद्र राज्य को 10000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, 10000 ऑक्सीजन सिलेंडर 30 प्रेशर स्विंग ऑक्सीजन प्लांट, 200 सीएपी, 200 बाइपेप मशीन तथा एक लाख पल्स ऑक्सीमीटर देने की मांग के बारे में निर्णय ले।
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3. राज्य सरकार ने अपने ऑक्सीजन के कोटे का प्रयोग अपने ही उत्पादन से करने देने की अनुमति मांगी है, उसका फैसला केंद्र जल्द करे।
4. राज्य सरकार को भवाली में 100 बेड का कोविड केयर सेंटर भवाली सैनिटोरियम में तैयार करने के आदेश दिए हैं।
5. उतराखंड के रेमडेसिविर के कोटे की आपूर्ति निर्बाध रूप से सुनिश्चित कराएं।
6. राज्य सरकार चार धाम के लिए जारी एसओपी का पालन गंभीरता से कराए और पुजारियों की सुरक्षा का ख्याल रखें।
बता दें कि उतराखंड हाईकोर्ट ने कोरोना प्रसार को लेकर राज्य की व्यवस्थाओं के खिलाफ दायर अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व अन्य की जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई की। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को उक्त आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने सख्त निर्देश केंद्र सरकार के अधिवक्ता को भी दिए हैं। जिनसे अगली तिथि पर भारत सरकार के सक्षम अधिकारी को कोर्ट के सामने पेश करने को बात कही है। ताकि वे ये स्पष्टीकरण दे सकें कि उत्तराखंड के आवेदन पर अब तक विचार क्यों नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार को जिम्मेदारी बनती है कि वह राज्य सरकार के संरक्षण के लिए आगे आए, लेकिन राज्य के पत्रों का केंद्र द्वारा जवाब तक न देना हैरान करने वाला है।
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