देहरादून, मंथन रस्तोगी: बीते दो सालों से मार्च और अप्रैल के आसपास बढ़ने वाले कोरोना के खतरे ने इस बार अपना रूप और समय भी बदला है। इस बार कोरोना जाड़ों के मौसम में ही बढ़ने लगा है। कोरोना के मामलों में अचानक से वृद्धि होने लगी है। हालत ये है कि उत्तराखंड सरकार ने नाइट कर्फ्यू भी लगा दिया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हो सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भी खटास पड़ जाए।
निर्वाचन आयोग फिलहाल तो चुनाव वक्त पर होने की बातें कर रहा है। यही माना भी जा रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर का संभावित खतरा प्रदेश में होने वाले चुनावों को तो नहीं रोक सकेगा। लेकिन ये प्रचार प्रसार में जुटे नेताओं की नाक में दम साबित हो सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कोरोना के मामले बढ़ते रहने पर निर्वाचन आयोग चुनावी रैलियों की संख्या को लिमिटेड कर सकता है।
ऐसे में नेताओं के लिए दिक्कतें बढ़ जाएंगी। चूंकि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए इस तरफ बात करना ज़रूरी है। दरअसल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज है। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत की तरह सिर्फ कोरोना से ही नहीं निपटना है। बल्कि उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि पार्टी का चुनावी प्रचार सही दिशा में आगे बढ़ते रहे।
इसे जरा बारीकी से देखते हैं। आपको याद होगा कि जब प्रदेश में कोरोना की पहली लहर का प्रवेश (साल 2020) हुआ था, तब त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम पद की जिम्मेदारी निभा रहे थे। तब उनके सामने खतरे से निपटने के लिए भले ही चुनौतियों की भरमार थी। लेकिन ये सभी चुनौतियां कोरोना संक्रमण को लेकर ही थी।
इसके बाद मार्च 2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया था। एक बार फिर मार्च अप्रैल के मध्य ही कोरोना के मामले बढ़ने शुरू हुए थे। तब कोरोना की दूसरी लहर के चैलेंज ने वाकई शासन प्रशासन को नाक चने चबवा दिए थे। मगर सीएम तीरथ सिंह रावत के सामने कोरोना का चैलेंज ही सबसे बड़ा चैलेंज था।
इस बार कहानी अलग है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने जुलाई 2021 में पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश की कमान सौंपी थी। चूंकि अब इस साल विधानसभा चुनाव होने थे, इसलिए माना जा रहा था कि अगर कोरोना की कोई लहर आती भी है तो वो मार्च या अप्रैल के आसपास आएगी। लाजमी है कि तब तक चुनाव हो जाएंगे।
लेकिन कोरोना के खतरे ने इस बार दिसंबर से ही सबको डराना शुरू कर दिया है। एकाएक मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए कोरोना से निपटना तो ज़रूरी है ही। मगर चुनावों में भाजपा की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी भी उन्हें निभानी है। अब अगर चुनावी रैलियों में भीड़ को नियंत्रित किया जाता है या फिर रैलियों की संख्या कम की जाती है तो ये सीएम धामी के लिए भी चुनौती हो सकती है।
कुल मिलाकर एक तरफ सीएम धामी को उत्तराखंड के लोगों को कोरोना नामक महामारी से बचाना है तो दूसरी तरफ उन्हें भारतीय जनता पार्टी के लिए भी चुनावों में काम करना है। इसलिए राह तो आसान होने वाली नहीं है। तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने जहां सिर्फ कोरोना का चैलेंज था वहीं सीएम धामी को कोरोना प्लस चुनावों का डबल चैलेंज फेस करना है।