देहरादून: प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है। यह तो हम सब जानते ही हैं कि मनुष्य का प्रकृति से नाता कितना गहरा और अटूट है। प्रकृति में हुए बदलाव का सबसे बड़ा नुकसान भी आखिर मनुष्य को ही झेलना पड़ता है। ऐसे में अगर मानव जनजाति ने पूर्व में दी गई चेतावनियों और सुझावों को समझा होता तो आज शायद जोशीमठ प्रकृति की इतनी बड़ी मार न झेल रहा होता। जोशीमठ के 603 घर दरार के चलते कभी भी ढह सकते हैं। सिंहधार वार्ड स्थित भगवती मंदिर पहले ही प्रकृति के प्रकोप से विलीन हो चुका है।
70 के दशक में आई भीषण बेलाकुचि बाढ़ के बाद चमोली जिले में जगह-जगह से भूस्खलन की खबरें सामने आती रहीं थी। जिसके पश्चात 1975 में तब की यूपी सरकार ने गढ़वाल कमिश्नर मुकेश मिश्रा की देखरेख में एक आयोग का गठन किया था। वर्तमान से 47 वर्ष पहले ही मिश्रा आयोग की रिपोर्ट ने जोशीमठ की हालत को गंभीर बताते हुए कहा था कि जोशीमठ मोरेन यानि ग्लेशियर के साथ आई रेतीली मिट्टी के ऊपर स्थित है और यदि जड़ से जुड़ी चट्टानों, पत्थरों को छेड़ा गया तो भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार आयोग ने जोशीमठ में किसी भी तरह का निर्माण या खनन न करे जाने का सुझाव दिया था। इसी के साथ आयोग द्वारा उस समय के सभी निर्माण कार्यों को सीमित कर देने की भी मांग की गई थी। परंतु तत्कालीन सरकार ने इस रिपोर्ट को हल्के में ही लिया जिसके चलते आज जोशीमठ खतरे में है।
जोशीमठ में वर्ष 2009 से NTPC पॉवर प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है जिसके चलते टनल निर्माण से जोशीमठ की जमीन को काफी बार नुकसान पहुंचा है। अभी हाल ही में हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण कार्य भी शुरू हुआ है। आम जनता के बार-बार निर्माण कार्यों का विरोध करने पर भी सरकार ने जनता की एक न सुनी जिसका नतीजा आज हम सबके सामने है। जोशीमठ की इस हालत पर देश दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं और सभी उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार कोई दुरुस्त कदम जरूर उठाएगी ताकि लोगों की जानें बच सकें।