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उत्तराखण्ड में किया काम और अब विदेशों में हो रहा है देवभूमि की सावित्री का नाम


 

हल्द्वानी: उत्तराखण्ड से लोग पलायन कर रहे है। वह इसका कारण धीमी विकास दर को बताते है। पहले पहाड़ों को छोड़ा जाता है फिर वहां विकास की बात की जाती है। ये देखने, सुनने और समझने में थोड़ा अटपटा लगता है। कुछ लोग ऐसे भी है जो कुछ अलग करने का दम रखते है। विकास दर को पीछे छोड़ते हुए वह खुद उत्तराखण्ड के विकास की स्क्रिप्ट तैयार करते हैं। इसका उदाहरण है कोटाबाग की सावित्री देवी गर्जोला।  सावित्रि ने जैविक खेती की दिशा में प्रदेश की पहचान बनाई और अब वो विदेश में उत्तराखण्ड को गौरवान्वित महसूस करा रही हैं। कोटाबाग की सावित्री देवी गर्जोला जैविक खेती के बल पर ही स्विट्जरलैंड को धान निर्यात कर रही हैं। यह धान भी औने-पौने दाम पर नहीं बल्कि सामान्य से पांच गुना अधिक दाम पर। उनकी छोटी सी शुरुआत का ही नतीजा है कि इस समय कोटाबाग विकास खंड के करीब सात गांव जैविक खेती को अपना रहे हैं और छोटी जोत होने के बाद भी करीब 400 क्विंटल धान सीधे यूरोप भेज रहे हैं।

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बता दें कि सावित्री देवी ने वर्ष 2000 में जैविक खेती करने का फैसला किया। उनके पास सिर्फ डेढ़ एकड़ का खेत था। जहां उन्होंने धान, गेहूं से लेकर अन्य कई फसलों को उगाना शुरू किया। खेती के साथ वो जैविक खेती के टिप्स भी सिखती रहीं और अपने इलाके की महिलाओं को भी प्रेरित करती रही। निजी अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि  इस समय पाटकोट, पवलगढ़, क्यारी, मनकंठपुर सहित सात गांव जैविक खेती से जुड़ गए हैं।ं हरियाणा की एक कंपनी कोहिनूर से अनुबंध किया गया। इस कंपनी के अनुबंध के बाद करीब 5500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 400 क्विंटल धान स्विट्जरलैंड भेजा जा रहा है। जैविक खेती की अपनी इस मुहिम में सावित्री देवी ने अन्य महिलाओं को भी शामिल किया है। दुर्गा जैविक उत्पादक उप समूह के जरिए जैविक उत्पाद तैयार कर बेचे जाते हैं। इस उपसमूह से करीब 12 महिलाएं जुड़ी हुई हैं।जैविक खेती के विषय पर सावित्री की सोच बहुत बड़ी है। वह कहती हैं कि उत्तराखण्ड में इससे अपनाया जा सकता है।वह कहती है कि इससे उत्तराखण्ड में रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।

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