शिक्षा का नया सत्र भी आजकल की तरह अप्रैल से शुरु न होकर 9 जुलाई से ही शुरु होता था . दूसरा त्योहार के दिन कई तरह के पकवान भी खाने को मिलते थे . जिनमें खीर, पुरी , ककड़ी का रायता , बड़ा और सेल मुख्य होते थे . अमा व ईजा घर में चावल की खूब गाढ़ी खीर बनाते थी . ईजा (मां) उसमें किसमिस , काजू व इलायची भी डालती थी . जिसकी वजह से बचपन में घर की खीर का वह स्वाद आज भी मुँह में है . हरेले के दिन हम बच्चों को सवेरे जल्दी उठकर नहाना भी पड़ता था . अमा ही नहाने व पूजा-पाठ के बाद हरेले को काटती थी . बाद में ईजा के पास यह जिम्मेदारी आयी . हरेला काटने के बाद अमा सभी के सिर में हरेला चढ़ाती थी . उससे पहले पिठ्यॉ लगाती थी . उसके बाद हम अमा को ढोग देते थे . इसके बाद शुरु होता था अड़ोस-पड़ोस में हरेला देने का सिलसिला . जिसमें हरेले के साथ पुरी व एक कटोरे में खीर जरुर होती थी . आस-पड़ोस में हरेला दने की जिम्मेदारी बच्चों की होती थी . इस दिन किसी न किसी फल-फूल का पेड़ लगाने की लोक परम्परा कुमॉऊ में है .