रविश कुमार के प्राइम टाइम में जो पटियाला का सरकारी स्कूल चल रहा था वो ब्रिटिश राज में 1875 में बना था जो बहुत भव्य दिख रहा था। हालत इतने सालों बाद भी शानदार तो नहीं पर ठीक ठाक थी। स्कूल को देखकर मुझे अनायास ही अपना स्कूल जीआईसी अलमोड़ा (उत्तराखण्ड) याद आ गया जो सरकारी स्कूल है, पर उसे भी अंग्रेजों ने 1889 में बनाया था। जो 1920 में हाईस्कूल से इंटर कर दिया गया था।जहां से निकलकर कई लोगों ने राज्य का नाम रोशन किया जिसमें सयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से लेकर पूर्व थलसेनाअध्यक्ष बीसी जोशी और राजनेता मुरली मनोहर जोशी तक प्रमुख हैं।वहां मैंने क्लास 6 से लेकर 12 तक की पढाई की थी। जिसकी बिल्डिंगे 125 साल के बाद भी मज़बूत थी।पहाड़ में अंग्रेज इतने साल पहले एक ऐसा शैक्षिक संस्थान बना गए जिसका फायदा पहाड़ के लोग अभी तक उठा रहे हैं।
पहले जो फर्नीचर था वो आज तक चल रहा है, हम भले ही क्लास 6 से 10 तक ज़मीन पर दरी पर बैठकर पढ़े पर 11 वीं और 12 वी में हमें कुर्सियों पर बैठने का मौका मिला ।वो फर्नीचर ज़मीन से जुड़ा हुआ था लंबी लंबी बेंचे थी जो 2004 में भी मज़बूत थी।यही हाल प्रयोगशाला का भी था जो बेहतरीन थी। पर क्या आज हम ये कल्पना कर सकते हैं नया सरकारी स्कूल जो अभी बना है वो इतना ही मज़बूत और सुविधा से संपन्न होगा शायद नहीं क्योंकि आज के सत्ताधारियों में वो हौसला और इच्छाशक्ति नहीं है उन्हें तो बस खानापूर्ति करनी होती है। उस समय का बनाया हुआ स्कूल आज भी अल्मोड़ा शहर का सबसे शानदार स्कूल है।ग्राउंड से लेकर क्लास हर चीज मौजूद है। वो आज तक शहर की आबादी बढ़ने के बावजूद बोझ ढो रहा है।कितना बढिया हो अगर सरकारें निजी स्कूलों को बढ़ाना ना देकर सरकारी स्कूलों पर जोर दें है। वहां बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाएं ताकि हर तबके को बराबरी का मौका मिले और वो भी आगे बढ़ सकें।
हेमराज चौहान, टीवी पत्रकार