नैनीताल: ठंडी जगहों में मछली पालन करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। लद्दाख में तापमान 12 से 15 डिग्री माइनस में रहता है। ऐसे में पानी जमने पर मछलियों के जीवित रहने की संभावना कम है। मगर लद्दाख के लिए उत्तराखंड ने मदद का हाथ बढ़ाया है। भीमताल की टीम लद्दाख में जाकर बारीकियों पर काम कर रही है।
दरअसल प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत लद्दाख में शुरू किए गए अभियान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भी मदद ली जाएगी। इसके लिए शीतजल मत्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय (डीसीएफआइआर) भीमताल केंद्र की टीम वहां पहुंची है।
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डीसीएफआइआर के निदेशक डा. प्रमोद कुमार पांडे की अगुवाई में विज्ञानी केंद्रीय संयुक्त सचिव मत्स्य सागर मेहरा के साथ पहले चरण में मत्स्य फर्मों के पानी की क्वालिटी टेस्ट कर रहे हैं। साथ ही नदियों के पारिस्थितिकी तंंत्र का अध्ययन किया जा रहा है।
इसके बाद ही ये पता लग सकेगा कि मत्स्य पालन की क्या संभावनाएं हैं और किन प्रजातियों का चयन किया जाएगा। डा. प्रमोद कुमार पांडे के मुताबिक मत्स्य पालन के विकास संभावनाएं पर्याप्त हैं। बताया कि डीसीएफआइआर मत्स्य बीज व चारे की चुनौतियों का समाधान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
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बता दें कि भीमताल केंद्र की टीम 30 अगस्त तक लद्दाख में रहकर निरीक्षण कर रही है। फिलहाल टीम तुमरा घाटी, कारगिल व द्रास स्थित मत्स्य पालन केंद्रों का दौरा कर रही है। तमाम चुनौतियों को परखने व जानकारी जुटाने के बाद आगे बढ़ा जाएगा।
डा. प्रमोद कुमार पांडे ने बताया कि मछली पालन के लिए बेस्ट समय अप्रैल से अक्टूबर का रहता है। चूंकि तापमान सामान्य से गर्म रहता है इसलिए मोरिरी और पैंगोंग झील की बर्फ पिघलनी शुरू हो जाती है। बता दें कि लद्दाख के लिए अच्छा संदेश ये है कि पैंगोंग झील में विज्ञानियों के दल ने पहली बार ट्रिपलोफाइस मछली का भी पता लगाया है।
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