हल्द्वानी:राज्य की भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक मुहिम की शुरुआत हुई है जिसके तहत है स्कूलों में उत्तराखण्ड की भाषा स्कूलों में पढ़ाई जाइगी। पिछले कई सालों से पलायन का शिकार हो रहे उत्तराखण्ड की भाषा विलुप्ट हो रही थी जिसे देखते ये महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है। इस पहल की शुरूआत शिक्षा विभाग द्वारा भाषा (गढ़वाली) के प्रचार प्रसार के लिए हो रही है। इसके तहत प्रदेश के विद्यालयों में गढ़वाली साहित्य पढ़ाने को कवायद शुरू हो चुकी है। एससीईआरटी (राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद) ने गढ़वाली साहित्य का पाठ्यक्रम तैयार कर शिक्षकों से सुझाव मांगे हैं। इसके लिए नौ अप्रैल से पौड़ी चड़ीगांव स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में तीन दिन की वर्कशॉप भी होगी। पहले चरण में इसमें देहरादून, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी जिले के शिक्षक प्रतिभाग करेंगे। शिक्षा विभाग की इस पहल से राज्य में गढ़वाली भाषा, पहाड़ के रीति-रिवाज एवं संस्कृति को एक बार फिर सामने ऊंचा मुकाम पहुंचाने की उम्मीद जगी है।
उत्तराखण्ड की भाषा को स्कूल के पाठ्यक्रम में जोड़ने के लिए राज्य गठन के बाद से लोक संस्कृति के संवाहक संगठन और लोक कलाकार सरकार से गुजारिश करते आ रहे हैं। उनकी मानें तो आजकल की भाग-दौड़ की जिंदगी में युवा अपनी भाषा की ओर ध्यान नहीं दे रहा है और संस्कृति व लोक विधाओं से विमुख होती जा रही है। युवा पीढ़ी हर समाज की ताकत होती है और वो ही उस ताकत को आगे बढ़ाती है। अगर आज के युवा को राज्य की भाषा का ज्ञान नहीं हुआ थो धीरे धीरे भाषा अपना अस्तित्व ही खो देगी। एनसीईआरटी की निदेशक सीमा जौनसारी ने बताया कि गढ़वाली साहित्य को लागू करने के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जा चुका है। जल्द ही शिक्षकों व विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर इसे परिमार्जित कर पुस्तकें प्रकाशित करने की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।