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कर्ज के बोझ से दबा उत्तराखंड, हर व्यक्ति पर है 66 हजार रुपए की देनदारी

देहरादून: राज्य को बने 21 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी उत्तराखंड मूल सुविधाओं के लिए लड़ रहा है। उत्तराखंड में विकास और आर्थिक मदद के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। काफी हद तक इसमें कामयाबी भी मिली लेकिन कोरोना वायरस ने सब चौपट कर दिया। पहले से कर्ज के बोझ से दबे उत्तराखंड पर 73,478 करोड़ का कर्जा हो गया है। साल 2022 तक ये 85486 करोड़ रुपए हो जाएगा। बीते साल उत्तराखंड ने 5475 करोड़ रुपए बतौर ब्याज के रूप में भरे हैं।

एक तरफ उत्तराखंड विकास के मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहा है और दूसरी तरफ जो धनराशि इन कामों में इस्तेमाल होनी चाहिए थी वह ब्याज में जा रही है। इसके अलावा जो कर्जा विकास कार्यों के लिए लिया गया था वह अन्य जगहों पर भी खर्च हो गया है। जो कर्ज से विकास कर उत्तराखंड पैसा बनाने का प्लान बना रहा था वह अब सपना सा लगने लगा है। राज्य के हर व्यक्ति पर तकरीबन 66 हजार रुपये से ज्यादा कर्ज है। राज्य के सामने विकास कार्यों को जारी रखने व कर्ज के ब्याज भरने की चुनौती है।

कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 25 फीसद तक कर्ज रहने की राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की सीमा को भी यह 2019-20 में ही सीमा पार चुका है। यह 31 फीसद से ज्यादा हो चुका है। राज्य की आमदनी को देखते हुए ये हालात अच्छे नही हैं।

पिछले दस सालों में राज्य की कर राजस्व के रूप में कुल आमदनी 4405 करोड़ रुपये से बढ़कर 10791 करोड़ पहुंची है। जो 2.5 प्रतिशत के आसपास की बढ़ोतरी है लेकिन कर्ज के ब्याज भुगतान की रफ्तार 3.46 गुना बढ़ी है। 10 साल पहले उत्तराखंड पर 1480 करोड़ का कर्ज था लेकिन अब ये 5475 करोड़ हो गया है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य को ऋण और ब्याज के रूप में अगले पांच वर्षों तक सालाना 4499.82 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। इसे करने के लिए राज्य को और लोन लेना होगा।

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