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MLA और MLC में क्या होता है अंतर… भारत में किन राज्यों में होते हैं दोनों चुनाव


Difference Between Legislative Assemble & Legislative Council:हर राज्य में राज्य सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर विधानसभा चुनाव का आयोजन होता है। इन चुनावों में जनता अपने प्रतिनिधि का चयन करती है। विधानसभा चुनावों में नेता उनकी कार्यशैली और विश्वसनीयता के आधार पर चुने जाते हैं। चुनाव जीतने वाले सभी प्रत्याशी विधायक के रूप में विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करते हैं और जनता से जुड़े मुद्दे एवं जन सामान्य की आवश्यकताओं को राज्य पटल पर सभी के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

विधानसभा का चुनाव के नतीजे आने के बाद सभी विधायकों की सहमति से मुख्यमंत्री के रूप में सदन (विधानसभा) का नेता चुना जाता है। मुख्यमंत्री की अनुमति से मंत्रिमंडल का गठन होता है इस मंत्रिमंडल में जनता द्वारा चुने गए विधायकों को ही स्थान मिलता है। मंत्री मंडल में स्थान प्राप्त करने वाले सभी विधायकों को कैबिनेट मंत्री की उपाधि मिलती है।

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विधानसभा के सदस्यों के समर्थन से राज्य सरकार अपना कार्यकाल पूरा करती है। अगर विधायक अपना समर्थन वर्त्तमान सरकार की जगह विपक्षी दल को दे देते हैं तो उस राज्य में विपक्षी दल की सरकार बन जाती है। जिस तरह मुख्यमंत्री सदन का नेता होता है उसी तरह विपक्ष के नेताओं द्वारा भी उनके राजनीतिक दल के चुने गए किसी एक विधायक को नेता प्रतिपक्ष (विपक्षी नेता) के रूप में चुनने का अवसर मिलता है।

विधान परिषद:-

विधान परिषद के सदस्य बनने के लिए योग्यता के मापदंड निर्धारित किए गए हैं। सदस्य की आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए और उसका भारतीय नागरिक होना अनिवार्य है। विधान परिषद में कम से कम 40 सीटें होती हैं। विधान परिषद सदस्य का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। यानि इनका चुनाव जनता नहीं, बल्कि जनता द्वारा चुने गए लोगों के द्वारा भी किया जाता है। परिषद के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव विधायक द्वारा किया जाता है। वहीं, एक-तिहाई सदस्य नगर पालिका, नगर पंचायत और जिला पंचायत की ओर से चुने जाते हैं। इसके अलावा 1/12 सदस्यों को शिक्षक और 1/12 को पंजीकृत ग्रेजुएट चुनते हैं।

विधान परिषद को राज्य का ऊपरी सदन भी कहा जाता है। विधान परिषद के चेयरमैन और उप चेयरमैन को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है। अभी भारत के 6 राज्यों में ही विधान परिषद है। यह राज्य हैं उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र। विधान परिषद के सदस्य राज्य सरकार के कार्यकाल को प्रभावित नहीं कर सकते हैं यानी ना वे राज्य सरकार का गठन कर सकते हैं और ना ही राज्य सरकार को गिरा सकते हैं। विधान परिषद के सदस्य हर वर्ग और समाज के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व राज्य स्तर पर करते हैं इसलिए हर क्षेत्र से जुड़े लोगों के विचारों एवं मतों को गंभीरता से सुना जाता है जिसपर फिर राज्य सरकार भी विचार-विमर्श कर जनहित के लिए उत्तम और सटीक निर्णय लेने में सक्षम होती है।

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