
नई दिल्ली :चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में गुरुवार को गुजरात की 92 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। कांग्रेस के लिए यह चरण काफी मुश्किलों भरा है क्योंकि पार्टी विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन के बोझ के तले दबी हुई है , कम से कम एक दर्जन सीटों पर बागी उम्मीदवारों हैं इसके आलावा भाजपा की आदिवासी वोटबैंक पर नजर जैसी चुनौतियों उसके सामने हैं । पहले चरण को लेकर जहाँ कांग्रेस आश्वस्त दिख रही थी, वहीँ दूसरे चरण में उसके लिए राह मुश्किल होने वाली है |
दूसरे चरण के मतदान में 32 सीटों वाला उत्तर गुजरात महत्वपूर्ण है। 2012 के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन 32 में से 17 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी को आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है। इन 13 सीटों पर 16 बागी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में हैं। सबसे बड़ी चुनौती बनासकांठा जिले में है, जहां कांग्रेस नौ में से पांच सीटों पर बागियों का सामना कर रही है। पिछले चुनाव में बहुत सी सीटों पर कांग्रेस 1,000 या इससे भी कम वोटों के अंतर से जीती थी और इसको देखते हुए इस बार मुक़ाबला कड़ा रहने की उम्मीद है |
छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी को सात सीटें दिए जाने से यह सवाल उठ रहा है कि जेडी (यू) से अलग हुए धड़े को इतनी सीटें देने की क्या जरूरत थी। सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत में शामिल रहे एक नेता ने कहा, ‘हम बेहतर मोलभाव कर सकते थे। वसावा का प्रभाव है लेकिन अपने इलाके से बाहर नहीं। उन्हें सात सीटें देने की कोई जरूरत नहीं थी।’
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 27 सीटें हैं। इनमें से अधिकतर पर गुरुवार को पंचमहल, छोटा उदयपुर और दाहोद जिलों में मतदान होगा। कांग्रेस की चिंता बीजेपी की नई रणनीति के कारण है जिसके तहत पिछले दो वर्षों में वीएचपी और आरएसएस के जरिए बीजेपी ने पूर्वी गुजरात में आदिवासियों के बीच पैठ बनाई है। वीएचपी की ओर से चलाए जाने वाले एकल विद्यालयों की संख्या में अच्छी वृद्धि हुई है। ये स्कूल आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा, आवास, यूनिफॉर्म और भोजन उपलब्ध कराते हैं।






