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द्वाराहाट में महिलाओं का ‘मां दूनागिरी पिरूल’ ग्रुप, कमरे से शुरू किया काम बाजार में पहुंच गया

Maa Dunagiri Pirul Group, Dwarahat story:- उत्तराखंड में स्थापित जीवन के कारोबार का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं ने संभाला हुआ है। उत्तराखंड की जो महिलाएं पहले खेतों और घरों के कामकाज देखती थी, आज वही महिलाएं पूरी दुनिया के सामने आर्थिक सशक्तिकरण का उदाहरण पेश कर रही है। एक ऐसी ही कहानी है द्वाराहाट के छोटे से गांव असगोली, झुरिया की महिलाओं की। उत्तराखंड में श्राप कहे जाने वाले चीड़ के पेड़ों से मिलने वाले पिरुल को ले कर लोगों के मन में जो नकारत्मक तस्वीर थी, उस तस्वीर को ये महिलाएं आज सुंदर उत्पादों के जरिए बदल रही है। स्वयं सहायता समूह के जरिए आपस में मिल कर ये महिलाएं “मां दूनागिरी पिरूल ग्रुप” नाम से सुंदर उत्पाद तैयार कर बाजारों में उतार रही हैं।

घर की सजावट के उद्देश्य से सीखा हैंडीक्राफ्ट


हल्द्वानी लाइव से खास बातचीत के दौरान समूह की सदस्य ममता अधिकारी बताती है कि शुरुआती दौर में पिरुल के उत्पाद लोगों द्वारा पसंद किए जाएंगे और आय का श्रोत बन पाएंगे, इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं था। वे बताती हैं कि समूह की एक महिला जब पिरुल से उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग लेकर आई थी, तो उन्हें देखकर बाकी महिलाओं को लगा कि यह एक अच्छी चीज है, और इसे वे अपने घर की सजावट और इस्तेमाल के उद्देश्य से सीख सकती है। परंतु उनकी लगन और मेहनत के कारण, उनके बनाए पिरुल के उत्पादों की डिमांड बाजारों में बढ़ने लगी। इस कारण एक बिजनेस के तौर पर, मां दूनागिरी पिरूल ग्रुप की शुरुआत हुई।

पिरुल से बना रही सुंदर उत्पाद


समूह की दूसरी सदस्य सोनिका अधिकारी बताती हैं कि वे डिमांड अनुसार पिरुल से अलग-अलग उत्पाद बनाकर तैयार करते हैं। इन उत्पादों में हॉट केस, फ्लावर पॉट, कटोरिया, प्लेट, टोकरी, पेन स्टैंड, राखियां आदि शामिल है। पिरुल के यह उत्पाद मात्र 200 रुपए से बाजार में उपलब्ध हैं। इसके अलावा समूह की महिलाएं ऐपन और बिनाई के काम में भी निपुण हैं।
मां दूनागिरी पिरूल ग्रुप की महिलाएं अपने उत्पादों को लोकल बाजार में बेचती है। इसके अलावा उनके उत्पाद आस पास के पर्यटन क्षेत्र जैसे कि कैंची धाम, रानीखेत आदि में भी देखने को मिलते हैं। समूह की महिलाएं अल्मोड़ा, रानीखेत, देहरादून, और कोसी जैसे कई जगहों पर अपने स्टाल लगा चुकी हैं। यही नहीं, महिलाओं द्वारा विभिन्न जगहों पर जाकर हैंडीक्राफ्ट की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

लोगो के तानों को छोड़, बनाई पहचान


5 महिलाओं से शुरू हुए इस ग्रुप में अब लगभग 10 से 12 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। मां दूनागिरी पिरूल ग्रुप में सुनीता, ममता, मंजू, सोनिका, विमला, ज्योति, लीला, गीता,नीमा, पूजा, आशा, जानकी और ललिता मिल कर सुंदर उत्पाद बाजरो में उतार रही हैं। मंजू बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें ये काम करता देख लोग उन्हें ताने देते थे। पिरूल के इन उत्पादों को समय की बर्बादी कहा जाता था। परंतु अब उनकी सफलता और उन्हें मिल रही पहचान के कारण ज्यादा से ज्यादा महिलाएं समूह से जुड़ने का प्रयास कर रही हैं।

पिरुल ने गांव की महिलाओं को दी नई पहचान


समूह की सदस्य ज्योति अधिकारी के अनुसार पिरुल के इन उत्पादों को बनाने में दो से तीन दिन का समय लगता है। परंतु कई बार उनकी मेहनत के अनुसार उन्हें रुपए नहीं मिल पाते, इसलिए बीच में औरतों का रुझान कम हो गया था।
लेकिन फिर पीरुल से बन रहे इन उत्पादों के कारण गांव की महिलाओं को एक नई पहचान मिल रही है। जहां पहले महिलाएं घर के काम में बंध कर रह जाती थी, वे महिलाएं अब बाहर लोगों से मिल–जुल रही हैं और अपना नाम बना रही हैं।

पहाड़ों में पलायन रोकने में स्वरोजगार है मददगार

पहाड़ों में स्वरोजगार को लेकर पूजा अधिकारी कहती हैं कि पहले खेती से गांव के लोगों का घर चल जाता था, परंतु अब वन्यजीव मानव संघर्ष और आदि कारणों से पहाड़ों पर खेती बहुत मुश्किल हो गई है। ऐसे में स्वरोजगार को आगे बढ़ाने का वक्त है। हैंडीक्राफ्ट और अन्य कार्यों से अब लोगों को घरों में ही रहकर काम मिल रहा है। यदि ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए तो पहाड़ों से पलायन रुक सकता है।

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