हल्द्वानी: विश्वस्तर पर 10 सितंबर 2015 को विश्व आत्महत्या निवारण दिवस मनाता है। इसका उद्देश्य लोगों को आत्महत्या जैसे अपराध के प्रति जागरूक करना एवं उन्हें आत्महत्या करने से रोकना है।विश्व आत्महत्या निवारण दिवस आत्महत्या और आत्महत्या रोकथाम के बारे में जागरूकता फैलाने के संबंध में संयुक्त प्रयासों के लिए देशों, संगठनों, समुदायों और व्यक्तियों द्वारा कदम उठाने का आह्वान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति खुदकुशी कर लेता है। प्रतिवर्ष 10 लाख लोगों की जान खुदकुशी की वजह से जाती है।आत्महत्या की प्रवृत्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी एक बड़ी समस्या है।
हल्द्वानी स्थित मनसा क्लीनिक की डॉक्टर नेहा शर्मा (क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट) ने बताया कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं है। आज की बढ़ती प्रतिस्पर्धा में चाहे वो कई भी क्षेत्र हो ( युवा शिक्षा वर्ग, व्यापारी वर्ग, पारिवारिक)। सभी अपने क्षेत्र में आगें बढ़ने की कोशिश करते हैं और कामयाबी ना मिलने से निराध होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं। बात हमारे देश भारत की करें तो 10 में से 4 व्यक्ति आत्महत्या का शिकार हो रहा है। इस लिस्ट में किशोर व बच्चे शामिल हैं। आत्महत्या का मुख्य कारण डिप्रेशन है, इससे शिकार व्यक्ति अपने आप को अपने द्वारा बनाए गए नकारातम्क विचारों से घेर लेता है। कठिनाइयों का सामने करने में असफलता माने वाले लोग आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
डॉक्टर नेहा शर्मा (क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट) की मानें तो 80 प्रतिशत आत्महत्याएं पूर्व संकेत के बाद होती आत्महत्या का विचार 6 माह पूर्व आने से लगता है। मेहनत करने के बाद भी असफलता के कारण निराधा पैदा होने लगती है और उसे ग्रस्त व्यक्ति अपने आप को कमजोर मानने लगता है। आत्महत्या करने की सोच रहा व्यक्ति नकारात्मक भावों से इस कदम घिरा रहता है कि वो उसके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ता है। यह एक आवेश में आकर लिया गया कदम होता है, जिसका खामयाजा परिवार को उठाना पड़ता है।
आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के अंदर- नकारात्मक विचार , चिड़चिड़ापन , अकेला पन, भावनात्मक रूप से कमजोर जैसे लक्ष्यण देखने को मिलते हैं। डॉक्टर नेहा शर्मा (क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट) ने बताया कि अगर इस तरह का कोई व्यक्ति से आप लोगों का परिचय तो उसे अकेला बिल्कुल नहीं छोड़े, रोगी को एक ऐसा माहौल दे जहां वो अपने आप को सकरात्मक रूप से देखे। रोगियों को मनोविज्ञानिक द्वारा काउंसिलिंग एव मनोचिकित्सक उपचार करवाएं। उन्होंने बताया कि आत्महत्या के अधिकतर केस 20 से 25 साल के छात्रों में देखने को मिलते हैं। उन्होंने बताया कि परिवार को अपने घर के सदस्य की गतिविधियों व व्यवहार पर नजर बनाए रखना चाहिए ताकि नकारात्मक विचार जो आत्यहत्या का मुख्य कारण है उन्हे दूर किया जाए।