Shocking Uttarakhand Case:
उत्तराखंड के देहरादून जिले के योग नगरी ऋषिकेश से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां बिहार के एक युवक ने 16 वर्षीय नाबालिक किशोरी से शादी की और उसे बच्चे का जन्म देने के लिए मजबूर किया। इस विवाह और प्रसव के बाद युवक को पुलिस ने हिरासत में ले लिया, और उसके खिलाफ पोक्सो एक्ट और दुष्कर्म की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।
कानूनी विवाह की उम्र का उल्लंघन
भारत में लड़की की शादी की कानूनी उम्र 18 वर्ष और लड़के की शादी की कानूनी उम्र 21 वर्ष निर्धारित की गई है। इन नियमों का उल्लंघन करने पर कानूनी कार्रवाई की जाती है। यह मामला भी इसी कानून के उल्लंघन का परिणाम है, जहां युवक ने 16 वर्षीय लड़की से विवाह किया, जो कि कानूनन अवैध था।
जन्म देने के बाद पता चली माॅं की उम्र
बीते शुक्रवार को जब युवक अपनी पत्नी को प्रसव पीड़ा के दौरान अस्पताल लेकर आया, तो डॉक्टरों ने नवजात का रजिस्टर में विवरण दर्ज करने के लिए युवक और उसकी पत्नी का आधार कार्ड चेक किया। इस दौरान डॉक्टरों को पता चला कि लड़की की उम्र 17 वर्ष है, जबकि उसने शादी के समय 16 वर्ष की उम्र बताई थी। इसके बाद डॉक्टरों ने तुरंत मामले की सूचना पुलिस प्रशासन को दी।
पुलिस की कार्रवाई और आरोपी की गिरफ्तारी
सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और नाबालिक से विवाह करने के आरोप में युवक को हिरासत में लिया। पुलिस ने युवक के खिलाफ पोक्सो एक्ट और दुष्कर्म की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया और उसे कोर्ट के समक्ष पेश किया, जहां से आरोपी को जेल भेज दिया गया। वहीं, नाबालिक किशोरी और उसके नवजात बच्चे को परिजनों के पास सौंप दिया गया।
समाज में जागरूकता की आवश्यकता
यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी उत्तराखंड के हल्द्वानी में एक नाबालिक छात्रा के शिशु को जन्म देने की सूचना सामने आई थी, जिसने पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा दिया था। इस प्रकार के मामलों से समाज में जागरूकता की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।
यह घटना समाज में बाल विवाह और नाबालिकों की शादी के खिलाफ जागरूकता फैलाने का एक और कारण बनती है। हमें यह समझना चाहिए कि बाल विवाह न केवल कानूनन गलत है, बल्कि यह नाबालिकों के शारीरिक और मानसिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
सभी के लिए एक सशक्त संदेश
यह मामला यह साबित करता है कि नाबालिकों की शादी की कानूनी उम्र का उल्लंघन करने पर किस प्रकार के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। समाज में इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाना जरूरी है ताकि ऐसे मामलों फिर कभी उत्पन्न न हों और युवाओं को अपनी शिक्षा और मानसिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिले।