नई दिल्लीः वो साल 2013 था, जिसने देवभूमि को दहलाने के साथ-साथ पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। बाबा केदारनाथ धाम में आई प्राकृतिक आपदा के चलते करीब 5000 लोग मारे गए थे, हजारों लोग विस्थापित हो गए थे। करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। जिसके कंकाल आजतक घाटी में मिल रहे हैं। विशेषज्ञों ने इस पूरी तबाही का कारण मानसून का जल्दी आ जाना और ग्लेशियरों का पिघलना बताया था।
तो वहीं इस भंयकर तबाही के 6 साल बाद एक बार फिर से कहा जा रहा है कि केदारनाथ घाटी में फिर वैसी ही तबाही देखने को मिल सकती है। बताया गया है कि केदारनाथ की चोराबाड़ी झील में दोबारा पानी इकट्ठा हो रहा है। ये वही झील है जो 2013 में आए महाविनाश की मुख्य वजह बनी थी। अब इसमें फिर से पानी एकत्र होने लगा है।
सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए पता चला है कि 2013 की तबाही जैसा खतरा फिर से निकट आ रहा है। जमी हुई चोराबाड़ी झील की कुछ नई तस्वीरें दिखाती हैं कि केदारनाथ धाम से दो किलोमीटर ऊपर कई जगह पानी एकत्र हो रहा है और पानी एकत्र होने वाली जगहों की संख्या बढ़ रही है। जो दिखाती हैं कि पिछले एक महीने में जल समूहों की संख्या दो से बढ़कर चार हो गई है।
इस मामले पर पर्यावरणविद और जेएनयू में प्रोफेसर एपी डिमरी का रिसर्च है। जिसमें कहा गया है कि केदारनाथ घाटी भूकंप और पारिस्थितिकी की दृष्टि से बहुत संवेदनशील और कमजोर है। 2013 में मानसून जल्दी आने और बर्फ पिघलने की वजह से विध्वंसक बाढ़ आ गई थी। अगर इस तरह जल समूह वहां पर फिर से पनप रहे हैं तो यह बहुत चिंता की बात है।
जानकारी के लिए बता दें कि मंदाकिनी रीवर बेसिन में 14 झीलें हैं, चोराबाड़ी उनमें से एक है। यह समुद्र से 3,960 मीटर की ऊंचाई पर है। चोराबाड़ी झील केदारनाथ से करीब दो किलोमीटर ऊपर है। 2013 में चोराबाड़ी झील में इसी तरह के जल समूह बन गए थे जिनके कारण चोराबाड़ी झील के किनारे के हिस्से ध्वस्त हो गए और केदारनाथ धाम में भयानक तबाही आ गई।
2013 में क्या हुआ?
हिमालयी ग्लेशियरों से हर साल 8 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है। हाल ही में एक अध्ययन में कहा गया है कि नई सदी में प्रवेश करने के साथ ही बर्फ पिघलने की स्पीड दोगुनी हो गई है। सरस्वती नदी और दूध गंगा में जिन इलाकों का पानी आता है, उन इलाकों में 16 जून को खूब मूसलाधार बारिश हुई और इन नदियों का पानी उफान पर आ गया।
17 जून को चोराबाड़ी झील के किनारे, जो बर्फ से बने होते हैं, तबाह हो गए और झील का अथाह पानी बाढ़ की शक्ल में बहने लगा। बारिश का पानी और साथ में झील का पानी मिलकर अथाह समुद्र में तब्दील हो गए। यह पानी निचले इलाकों की ओर तेजी से बहा और गोरीकुंड, सोनप्रयाग, फाटा आदि इलाकों समेत पूरी केदारनाथ घाटी में तबाही मच गई।