Chamoli News

डुंगरी गांव की निधि सिरस्वाल BARC में बनी वैज्ञानिक, व्यर्थ नहीं गया पिता का संघर्ष

डुंगरी गांव की निधि सिरस्वाल BARC में बनी वैज्ञानिक, व्यर्थ नहीं गया पिता का संघर्ष

चमोली: पहाड़ की एक बेटी ने अपने परिवार के साथ साथ पूरे क्षेत्र का नाम रौशन किया है। चमोली में रहने वाली निधि का चयन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (Bhabha Atomic Research Center-BARC) में वैज्ञानिक के पद पर हो गया है। यहां तक पहुंचना मुश्किल था मगर इसे बेटी की मेहनत, लगन और परिवारजनों के साथ ने थोड़ा आसान बना दिया।

चमोली जिले के डुंगरी गांव निवासी 21 वर्षीय निधि सिरस्वाल (Nidhi Siraswal) ने सारी सुर्खियां बंटोर ली हैं। प्रदेश की बेटियां लगातार ये दिखा रही हैं वह किसी से भी कम नहीं हैं। इसी क्रम में अब निधि का नाम भी जुड़ गया है। निधि को BARC में बतौर वैज्ञानिक (Scientist) सेलेक्ट किया गया है। जो कि कोई छोटी मोटी बात नहीं है। यहां जाने के लिए छात्रों को बेहद कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

निधि सिरस्वाल ने पहले 24 सितंबर 2021 को लिखित परीक्षा दी थी। जिसके बाद बेटी को शॉर्ट लिस्ट कर लिया गया। फिर 12 नवंबर को निधि का इंटरव्यू मुंबई (Interview in MUmbai) के अणु शक्ति नगर में हुआ। अब 30 नवंबर को परिणाम घोषित (Results announced) हुए तो डुंगरी गांव में मिठाइयां बंटनी शुरू हो गई। निधि का चयन BARC में हो गया। जिससे पूरे क्षेत्र में जश्न का माहौल है।

गौरतलब है कि निधि का इंटरव्यू करीब 80 मिनट चला। लेकिन बचपन से ही मेधावी रही निधी ने इसे भी पास कर लिया। ये बहुत छोटी उम्र से ही दिखता था कि निधि का भविष्य उज्जवल होगा। जी हां, बेटी ने हाईस्कूल (Highschool) की परीक्षा 90 प्रतिशत, इंटरमीडिएट (Intermediate) की परीक्षा 89, स्नातक (Graduation) की परीक्षा 84 प्रतिशत और पीजी (Post Graduate) की परीक्षा 80 फीसदी अंकों के साथ पास की है।

बता दें कि निधि ने ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के गुरु तेगबहादुर खालसा कॉलेज और फिर पीजी हंसराज कॉलेज से किया है। निधि को कदम कदम पर अपने परिवार और खासकर गुणी पिता भोला दत्त सिरस्वाल का साथ मिला। गरीब परिवार से आने वाले भोला दत्त के सिर से उनके पिता का साया भी काफी जल्दी उठ गया था। जिसके बाद जिम्मेदारियां उनपर आ गई थी।

इसलिए वह खेती-बाड़ी में मां की मदद करते थे। चूंकि नगद आय का कोई स्रोत नहीं था, इसलिए वह सुबह सुबह खेतों में काम करने के बाद पढ़ाई करने भी जाते थे। जिसके लिए उन्हें गैरसैंण तक सात-आठ किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी। वर्तमान में वह राजकीय इंटर कॉलेज मरोड़ा में अध्यापक हैं। वाकई बेटी ने पिता के संघर्ष को भी खुद कामयाब होकर एक इनाम दिया है।

To Top