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पहले के चुनाव में एक सीट से जनता चुनती थी दो प्रतिनिधि, जानिए क्यों बंद की गई यह व्यवस्था

India’s Election History: Punjab Election History: Abolished Election Rule’s Details:

आजादी के बाद देश के पहले लोकसभा चुनाव के दौरान एक अनोखी व्यवस्था को जनता से परिचित कराया गया। इस व्यवस्था के अंतर्गत कई संसदीय क्षेत्रों से दो सांसदों का चुनाव होता था। 1952 में यह फार्मूला जनता की आवश्यकताओं को सुनकर प्रभावशाली तरीके से पूरा करने के लिए अपनाया गया था। ऐसे में हर व्यक्ति के पास दो वोट होते थे, जिन्हें वह अपने पसंदीदा प्रतिनिधि को देते थे हालांकि कोई भी व्यक्ति अपने दोनों वोट एक ही उम्मीदवार को नहीं दे सकता था। वोटों की गिनती के दौरान जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते थे उसे विजयी घोषित कर दिया जाता था। दूसरा विजयी प्रत्याशी आरक्षित वर्ग का होता था उसे भी उसी वर्ग के अन्य उम्मीदवारों से ज़्यादा वोट मिलने पर विजयी घोषित किया जाता था।

जब तीसरे नंबर पर रहने वाला उम्मीदवार बन गया विधायक

इस व्यवस्था को जनता की आवाज़ और उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिए लागू किया गया था। इस व्यवस्था से दो उम्मीदवार ज़्यादा वोट होने पर जीतते तो थे लेकिन इस व्यवस्था में एक बड़ी त्रुटि भी सामने आई जब तीसरे नंबर के प्रत्याशी को विधायक बना दिया गया था। यह किस्सा पंजाब के विधानसभा चुनाव के समय सामने आया। पंजाब के नवांशहर विधानसभा सीट पर चुनाव के बाद वोटों की गिनती हुई तो तीसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा वोट लाने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को विधायक बना दिया गया। पहले नंबर पर गुरबचन सिंह नाम के उम्मीदवार को 20 हजार 593 और दूसरे नंबर पर रहने वाले दलीप सिंह को 18 हजार 408 वोट मिले। जबकि तीसरे नंबर के प्रत्याशी बिशना राम को 17 हजार 858 ही वोट मिले थे।

बता दें कि पहले नंबर पर रहे गुरबचन सिंह सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधायक चुने गए। दूसरे नंबर पर रहने वाले दलीप सिंह भी सामान्य वर्ग से थे लेकिन एससी-एसटी वर्ग का भी एक विधायक चुनने का प्रावधान था। यही कारण रहा कि तीसरे नंबर के प्रत्याशी बिशना राम को विधायक चुन लिया गया। ऐसी एक त्रुटि के बाद इस व्यवस्था को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और बदलते समय के साथ जनता में बढ़ती नाराज़गी और संशय को देखते हुए इस व्यवस्था को बंद कर दिया गया।

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