देहरादून: कहते हैं ना जिसने मुश्किल वक्त में खुद को गिरने नहीं दिया वह कमाल जरूर करता है। खेल के मैदान से इस तरह की तमाम वाक्या हमारे सामने आते हैं। क्रिकेटरों के परिश्रम की कहानी तो हर कोई जनता है लेकिन ओलंपिक खिलाड़ियों की कहानी कामयाबी के बाद ही सामने आती है। खुद को साबित करने के उनके पास मौके भी काफी कम ही होते हैं। हार के साथ अपने ओलंपिक अभियान की शुरुआत करने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया है। क्वार्टरफाइनल में भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से मात दी।
हॉकी में किया अनोखा कारनामा- वंदना कटारिया
ओलंपिक अभियान में भारतीय टीम के लिए सबसे बड़ा मैच साउथ अफ्रीका के साथ रहा। टीम ने उस मुकाबले को 4-3 से अपने नाम किया। इस जीत ने टीम के अंदर एक अलग ही ऊर्जा भर दी। भारतीय टीम के लिए साउथ अफ्रीका के खिलाफ हैट्रिक जमाने वाले हरिद्वार निवासी वंदना कटारिया के बारे में हर कोई बात कर रहा है। वह ओलंपिक में हैट्रिक जमाने वाली पहली भारतीय हॉकी खिलाड़ी बन गई है। एक वक्त था जब वंदना के पास हॉकी स्टिक और जूते खरीदने के रुपए नहीं थे।
हरिद्वार में जन्मी वंदना कटारिया का सफर
उत्तराखंड के रोशानाबाद(हरिद्वार) निवासी वंदना कटारिया का जन्म एक मध्यवर्ग परिवार में हुआ। उनके पिता नाहर सिंह ने BHEL से रिटायर होने के बाद दूध बेचने का व्यवसाह करते थे। हॉकी के प्रति वंदना कटारिया का प्यार गांव से ही शुरू हुआ, उस वक्त गांव वाले उसका मजाक उड़ाया करते थे लेकिन पिता नाहर सिंह और माता सोरण देवी ने इसे नजर अंदाज किया और बेटी के सपनों को पूरा करने पर ध्यान दिया। हॉकी के सपने को पूरा करने के लिए वंदना उत्तर प्रदेश चले गई। वह भारतीय टीम की कप्तान भी रह चुके हैं।
कभी नहीं थे जूते खरीदने के रुपए
वंदना कटारिया ने कोच पूनम लता को अपना आदर्श मानती हैं। दोनों के बीच एक बेहद करीबी रिश्ता है। 2004 से 2010 तक लखनऊ स्पोर्ट्स हास्टल में कोच रहीं पूनम लता ने हर मोड़ पर वंदना का साथ दिया है। कोच कहती हैं कि दो ओलंपिक खेल चुकी वंदना में कोई बड़पन नहीं है। वह जैसे पहली थी वैसी ही है। एक वक्त ऐसा था कि उनके पास हॉकी स्टिक और जूते खरीदने के लिए भी रुपए नहीं होते थे। आज वंदना ने ओलिंपिक में गोल की हैट्रिक करके इतिहास बना दिया है। वह पहली ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिसने ओलिंपिक में एक ही मैच में तीन गोल मारे हों। एक दौर ऐसा था कि हास्टल की छुट्टी होने पर जब सभी लड़कियां अपने घर चली जाती थीं, तब वंदना अकेले ही हास्टल में रहती थीं। बकौल वंदना इस मौके पर हमेशा उनकी कोच पूनम लता ने उसकी मदद की।
दो माह पहले हुआ पिता का निधन
उन्होंने बताया कि वंदना ने अपने पूरा जीवन हॉकी को दे दिया था। कुछ माह पहले ही उनके पिता का निधन हुआ था । उस वक्त वंदना कटारिया बंगलुरू में टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थी। पिता के सपने को पूरा करने के लिए वह उनके अंतिम दर्शन के लिए नहीं गई और अपनी प्रैक्टिस जारी रखी। उनके परिश्रम और साहस का नतीजा पूरी दुनिया ने टोक्यो ओलंपिक में देखा है।