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National News: पिछले सप्ताह अमित शाह ने 1860 के भारतीय दंड संहिता, 1973 के आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए संशोधित विधेयक सदन में पेश किया था। जो आज बहुमत के साथ लोकसभा से पारित हो गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने नए कानून को संविधान की भावना के अनुरूप बताया। क्योंकि लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा ने तीनों संशोधित आपराधिक कानून विधेयक पारित किए हैं।
यह तीनों विधेयक महिला एवं बाल अपराधों, मानव तस्करी एवं मॉब लिंचिंग पर भी केंद्रित हैं।
अमित शाह ने क़ानून व्यवस्था की कुछ त्रुटियों को सदन के पटल पर उठाया और उनका उपाय भी बताया। अपराधियों को सख्त सजा देना क़ानून का मूल कर्तव्य है। पर इससे भी एक कदम आगे गृह मंत्री ने अपराधियों को सजा मिलने की समय सीमा की नई विधि को भी विस्तार के साथ समझाया। कानून और नियमों के बीच रिक्तियों का फायदा उठाकर बचते आ रहे आरोपियों और आदतन अपराधियों के बीच अब इस विधेयक के आ जाने से खलबली है।
अमित शाह बोले कि अब जीरो एफआईआर को किसी भी थाने और अधिकृत ऑनलाइन पोर्टल्स द्वारा दर्ज कराया जा सकेगा। जिससे महिलाओं और गरीबों पर होने वाले अपराधों की सही और सटीक सूचना प्रशासन को मिलेगी। जो न्यायपालिका को इन अपराधों की उत्पत्ति का मूल कारण जानने में सहयोगी साबित होगी।
आतंकवादियों के कृत्यों को मानव मूल्यों के पूर्ण विपरीत बताकर, अमित शाह ने सांसदगणों को आतंकवादियों के मानवाधिकार की चिंता ना करने का सुझाव दिया है। साथ ही मॉब लिंचिंग की अधिकतम सजा फांसी तय कर दी गई है। अपराध की निर्दयता का स्तर भी अब अपराधी की अधिकतम सजा का कारण बन सकता है।
अब देखना यह है कि भारत के मज़बूत भविष्य के निर्माण को ध्यान में रख कर, प्रस्तुत एवं पारित हुए इन 3 विधेयकों के खिलाफ विपक्ष किस तरह विरोध प्रदर्शन करेगा ? क्योंकि महिला अपराधों और अराजकता पर लगाम कसने वाले इन विधेयकों को अब तक सभी का समर्थन और विश्वास प्राप्त होता नज़र आ रहा है।
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