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काठगोदाम रेलवे स्टेशन का इतिहास, क्यों अंग्रेजों के लिए महत्वपूर्ण था ये शहर

History Of Kathgodam Railway Station: काठगोदाम… एक ऐसा शहर जिसकी जगह भले ही हल्द्वानी ने ले ली हो लेकिन इसका इतिहास आज भी लोग जानना पसंद करते हैं। हल्द्वानी लाइव अपने इस लिखे में आपको काठगोदाम के रेलवे स्टेशन के इतिहास बारे में बताएगा। जिसके पन्ने अंग्रेजों द्वारा लिखे गए थे। वहीं काठगोदाम रेलवे स्टेशन को कुमाऊं का पहला रेलवे स्टेशन भी कहते हैं और कुछ किताबों में इसे आखिरी स्टेशन भी कहते हैं। ( History of Kathgodam Railway Station)

काठगोदाम में पहली ट्रेन की आवाज

24 अप्रैल 1884 का दिन जब पहली बार पहाड़ की वादियों ने ट्रेन की सीटी सुनी थी। गौला नदी और जंगल को पार करते हुए भांप इंजन वाली रेलगाड़ी काठगोदाम पहुंची थी। ये उस दौर की बात है जब देश में अंग्रेजों की हुकुमत थी। वहीं क्षेत्र में बाघ, तेंदुओं और हाथी की दहशत हुआ करती थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा कुमाऊं में कब्ज़ा कर लिए जाने के बाद यह जगह व्यापार के रूप से भी महत्त्वपूर्ण बन गयी। चन्द शासन काल में काठगोदाम गांव को बाड़ाखोड़ी या बाड़ाखेड़ी के नाम से जाना जाता था। ( Kathgodam Railway Station)

सन 1800 में अंग्रजों ने भारत में अपने पैर पसारना शुरू कर दिया था। मुम्बई, कलकत्ता, हैदराबाद, आगरा और लखनऊ में उन्होंने रेलगाड़ियों का जाल बिझा दिया था। हालांकि ये काम उत्तरी पूर्व में नहीं हुआ था। ऐसे में गौरो को व्यवसाय करने में परेशानी हो रही थी। अब पेट के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है और ऐसा ही अंग्रेजों ने किया। व्यापार को उत्तरी क्षेत्र तक फैलने के लिए अंग्रेज काठगोदाम तक रेल पटरी ले आए। उन्होंने 1870 के दशक में ही पटरियों की नींव रख दी थी। और इस तरह से पहाड़ का आख‍िरी स्‍टेशन काठगोदाम बना। ( Railway Station in Kumaun Region)

लखनऊ से आई पहली ट्रेन

काठगोदाम में पहली बार 24 अप्रैल 1884 में ट्रेन लखनऊ से आई थी। काठगोदाम को पहले चौहान पाटा कहा जाता था। 19वीं सदी में काठगोदाम लकड़ियां के व्यापार का मुख्य केंद्र था पहाड़ो से लकड़ियों को गौला नदी के माध्यम से यहां पहुँचाया जाता था। उन लकड़ियों का भंडारण यहां के गोदामों में हुआ करता था। इसी कारण इस क्षेत्र को काठगोदाम नाम कहा जाने लगा। इमारत बनाने के लिए अंग्रेज यहां से पूरे भारत मे लकड़ी भेजते थे। इसी को देखते हुए यहां रेल पथ बनाया गया।

साल 1920 में काठगोदाम से आगरा के लिए कुमाऊं एक्सप्रेस ट्रेन चली, 1 जुलाई 1994 में दिल्ली के लिए रानीखेत एक्सप्रैस ट्रेन चली, 1999 में रामनगर, मुरादाबाद के लिए पैसेन्जर एक्सप्रेस ट्रेन चली, 4 जून 2002 में देहरादून के लिए दून एक्सप्रेस ट्रेन चली 17 मई 2004 में फिर से एक और ट्रेन काठगोदाम से दिल्ली के लिए सम्पर्क क्रांति ट्रेन चली और 21 मार्च 2012 में दिल्ली शताब्दी एक्प्रैस ट्रेन का संचालन शूरू हुआ था। इसके बाद कई अन्य रेलगाड़ियां भी काठगोदाम से शुरू हो चुकी है।

सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन काठगोदाम

शुरुआती दौर में काठगोदाम से सिर्फ मालगाड़ी ही चला करती थी परंतु बाद में सवारी गाड़ी भी चलने लगी आज काठगोदाम कुमाऊं को रेल मार्ग से देश के कई महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने का माध्यम है। ब्रिटिश शासकों द्वारा कुमाऊं पर कब्जा करने के बाद काठगोदाम उनके लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया था। इस प्रकार धीरे-धीरे यह क्षेत्र तरक्की करने लगा और वर्तमान में कई आबादी वाले शहरों के साथ-साथ कुमाऊं को शहर से जोड़ने वाली कड़ी बन चुकी है। जहां से पूरे पहाड़ों के लिए बस और शहरों के लिए ट्रेनें आती जाती हैं। आज काठगोदाम किसी महानगर से कम नहीं है वर्तमान में इस जगह से 10 ट्रेनों का संचालन प्रतिदिन होता है जिनमें से दिल्ली, जम्मू, कानपुर, देहरादून समेत कई बड़े शहरों के लिए ट्रेन चलती है। इसी के साथ काठगोदाम अपनी प्राकृतिक खूबसूरती से देश की सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन का दर्जा भी हासिल कर चुका है।

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