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अमेरिका के डॉक्टर्स ने इंसान के शरीर में लगाया सूअर का दिल, भारत के इस डॉक्टर ने 25 साल पहले किया पर जाना पड़ा था जेल!

अमेरिका में अभी हाल ही में चिकित्सक जगत में डॉक्टरों ने एक नई उपलब्धि प्राप्त की। इसमें डॉक्टरों की एक टीम ने इंसान के अंदर सूअर का दिल प्रत्यारोपित (transplant) किया। 57 वर्षीय डेविड बैनेट का हार्ट ट्रांसप्लांट यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल स्कूल, अमेरिका (University of Maryland Medical School, Baltimore, America) की टीम ने किया। सर्जरी के बाद डेविड बैनेट अब रिकवर कर रहे हैं। जिसके बाद से चिकित्सा जगत में इस नई उपलब्धि से लोगों के मन में एक नई उम्मीद की किरण जागी है।

अमेरिका के डेविड बैनेट (David Benett) ने सर्जरी से 1 दिन पहले पूछे जाने पर कहा कि उनके पास मरो या यह सर्जरी करवाने के अलावा दूसरा चारा नहीं था, डेविड बैनेट ने आगे कहा कि मैं जानता हूं यह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। अमेरिका में डॉक्टरों की टीम ने यह ट्रांसप्लांट कई सालों की मेहनत और शोध के बाद आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified) सूअर के दिल को इंसान के शरीर में सफल तरीके से प्रत्यारोपण किया।

भारत में भी सन 1997 में असम के डॉ धनीराम बरुआ ने एक 32 साल के व्यक्ति के शरीर में सूअर का दिल प्रत्यारोपित (Pig to Human Heart transplant) किया था, हालांकि मरीज की जान नहीं बच पाई थी। डॉक्टर बरुआ के ऊपर हार्ट ट्रांसप्लांट से जुड़े कानून को नजरअंदाज करने को लेकर केस दर्ज हुआ जिसके बाद उन्हें 40 दिन जेल में भी रहना पड़ा। गिरफ्तारी के बाद उन्हें जमानत पर रिहाई मिल गई लेकिन यह मामला आज भी उन पर अदालत में चल रहा है।

डॉ धनीराम बरुआ (Dr. Dhaniram Baruah) का कहना है कि मैंने 25 साल पहले इंसान के शरीर में सूअर का दिल लगाया था और अमेरिका के डॉक्टर आज यह काम कर रहे हैं, मैंने सौ से ज्यादा अधिक शोध कर इस बात का पता लगाया था और दुनिया को बताया था कि सूअर के दिल समेत कई अंग इंसान के शरीर में लग सकते हैं। क्योंकि सूअर और इंसान के शरीर के अंगों में कई तरह की समानताएं हैं। डॉक्टर धनीराम बरुआ का दावा है की दुनिया में सबसे पहले उन्होंने इस शोध और प्रयोग को किया था और जिस व्यक्ति को सूअर का दिल लगाया था वह 7 दिन तक जीवित भी था। मेरे साथ उस वक्त हांगकांग के सर्जन डॉक्टर जोनाथन हो के-शिंग भी थे। मरीज की मौत के बाद हम दोनों को गैर इरादतन हत्या और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1997 के तहत जेल भेज दिया गया था।

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