देहरादून: कोरोना वायरस की वजह से पूरे देशभर में लॉकडाउन हो गया था जिसके कारण शिक्षा का पूरा पैटर्न ही बदल गया है।बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने शिक्षण संस्थान बंद कर दिए हैं।पढ़ाई में नुकसान ना हो इसके लिए छात्र-छात्राओं को घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है।ऑनलाइन पढ़ाई का फायदा उन्हीं छात्र-छात्राओं को है जिनके गांव में मोबाइल कनेक्टिविटी है।लेकिन उन बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ना मुश्किल हो रहा है जिनके गांव में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर स्थित चकराता ब्लॉक के दूरस्थ गांवों का भी यही हाल है। इन गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी न होने से छात्र-छात्राएं ऑनलाइन पढ़ाई नहीं पढ़ पा रहे हैं।इस मुश्किल से निकलने के लिए ब्लॉक के सुदूरवर्ती राजकीय इंटर कॉलेज अटाल के चार शिक्षकों ने अनूठी पहल की है। वे रोज नेटवर्क विहीन गांवों में जाकर छात्र-छात्राओं को पढ़ाते हैं। इससे वो उन बच्चों को पढ़ा भी देते है और साथ ही खुद भी पढ़ लेते है। इस पहल को देख के विभागीय अधिकारियों ने भी प्रशंसा की है।
आपको बता दें कि बीते माह राजकीय इंटर कॉलेज अटाल के तीन शिक्षकों जगमोहन शर्मा, चरण सिंह राणा व डॉ. अरविंद सिंह चौहान को जब पता चला कि नेटवर्क न होने के कारण दूरस्थ गांवों में छात्र-छात्राएं पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने इसका विकल्प सोचा। उन्होंने आपस में विचार-विमर्श कर छात्र-छात्राओं को उनके गांव जाकर पढ़ाने का निर्णय लिया। इन तीन शिक्षकों ने 24 अगस्त से इस शुभ कार्य की शुरूआत की जिनमे से एक सामाजिक विज्ञान,दूसरे साइंस व तीसरे हिंदी विषय के शिक्षक है। उनसे प्रेरित होकर बाद में एक अन्य शिक्षक अरुण गौड़ ने भी हिस्सा लिया। अब चारों शिक्षक शेड्यूल तय कर रोजाना सुबह नौ बजे घर से पहले विद्यालय जाते हैं और फिर किसी एक गांव की ओर निकल पड़ते हैं।
बच्चों के अभिभावक भी इस पहल से खुश हैं। वे रोज हर गांव में चार घंटे छात्र-छात्राओं को पढ़ाते हैं। अब तक उन्होंने ग्राम भंडियारा, फेडिज, हेडसू व चांजोई जाकर 50 छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में मदद की हैं।उन्होंने कहा कि यही एकमात्र तरीका है जिससे बच्चों को पढ़ाई में मदद मिल सकती है। इसलिए उन्होंने तय किया है कि विद्यालय खुलने तक वह यह सिलसिला जारी रखेंगे।
दसवीं के छात्र रविंद्र सारस्वत (भंडियारा), छात्र सुमन (फेडिज), रुचिका चौहान, अमृता व छात्र निशांत (चांजोई) ने कहा कि, हमे लगता था कि गांव में मोबाइल नेटवर्क न होने के कारण हम इस साल पढ़ाई में पीछे रह जाएंगे। लेकिन, हमारे शिक्षकों ने ऐसी नौबत नहीं आने दी। वह गांव में आकर हमारी पूरी मदद कर रहे हैं। एक तरह से यह हमारे लिए शिक्षकों का आशीर्वाद है। डॉ. शूलचंद ने कहा कि बाकी अन्य विद्यालयों के शिक्षकों को अटाल के शिक्षकों से प्रेरणा लेनी चाहिए और इस पहल को आगे बढ़ानी चाहिए। इससे सभी छात्र-छात्राएं समान रूप से अपना कोर्स पूरा कर पाएंगे।
यहां नहीं है मोबाइल नेटवर्क
सैंज-तराणू, अनतेऊ, अटाल, हेडसू, फेडिज, डिमिच, विरशाड, चांजोई, भरम, कावा खेड़ा, उतरेड़ा, भंडियारा, नौरा, ठारठा, पुनिंग, पिंगुवा, सिली आदि। राजकीय इंटर कॉलेज अटाल में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र-छात्राएं इन्हीं गांवों में रहते हैं।