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कारगिल विजय दिवस: इतिहास पर गर्व कर रहा है उत्तराखंड,75 शहीदों को शत-शत नमन

कारगिल विजय दिवस: इतिहास पर गर्व कर रहा है उत्तराखंड,75 जांबाजों को शत-शत नमन

हल्द्वानी: रविवार को पूरा देश एक खास जश्न के इतिहास को जी रहा है। 26 जुलाई 1999 को हमारे जवानों ने देश को जीत का तोहफा दिया था। दुश्मन को बताया था कि भारत की धरती पर नजर रखना खितना खतरनाक साबित हो सकता है। उन्हें उन्ही की भाषा में सबक सिखाया था जो पूरी दुनिया ने देखा।

भारतीय सेना के शौर्य का प्रतीक ‘कारगिल विजय दिवस’ 26 जुलाई को मनाया जाता है। साल 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों नेे अदम्य शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। कारगिल विजय दिवस केे मौके पर देशवासी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर जवानों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।कारगिल युद्ध को जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में लाइन ऑफ कंट्रोल के किनारे, 1999 के मई-जुलाई के दौरान लड़ा गया था। इस युद्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों को मार गिराया था। यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था।

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को कई बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तानी सैनिक ऊंची पहाड़ियों पर थे जबकि हमारे सैनिकों को गहरी खाई में रहकर उनसे मुकाबला करना था। भारतीय जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुंचना पड़ रहा था, जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था। लेकिन भारतीय सैनिकों ने हर चुनौती को स्वीकार किया।

कारगिल युद्ध 60 दिनों तक चला और अंततः 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। भारत में युद्ध में विजय पताका फहराई और देश के स्वाभिमान के इस प्रतीक को ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया

देश के विभिन्न राज्यों के सैनिकों ने इस लड़ाई में भाग लिया था। इस लिस्ट में उत्तराखंड भी शामिल है। कारगिल की लड़ाई में उत्तराखंड के 75 जवान शहीद हुए थे। इनमें से 37 जवानों को बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला। इस लड़ाई में देहरादून  28,पौड़ी 13, टिहरी 8,नैनीताल 5, चमोली 5, अल्मोड़ा 4, पिथौरागढ़ 4, रुद्रप्रयाग 3, बागेश्वर 2, ऊधमसिंह नगर 2 और उत्तरकाशी का एक जवान शहीद हुआ था। उत्तराखंड में एक कहावत है कि हर घर का एक बेटा भारतीय सेना में अपनी सेवा देता है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी। वक्त बदल जरूर गया है लेकिन उत्साह भी दोगुना हो गया है।

वीरचक्र विजेता: कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, एके सिन्हा, खुशीमन गुरुंग, शशिभूषण घिल्डियाल, रुपेश प्रधान व राजेश शाह।

सेना मेडल विजेता: मोहन सिंह, टीबी क्षेत्री, हरि बहादुर, नरपाल सिंह, देवेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, मोहन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह और संजय।

मैंस इन डिस्पैच :राम सिंह, हरिसिंह थापा, देवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगत सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन, अनिल कुमार। 

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