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मां के लिए पहाड़ के बेटे ने छोड़ी लाखों की नौकरी, खेती कर आबाद कर दिए बंजर खेत

हल्द्वानी: उत्तराखण्ड पलायन की मार झेल रहा है। उसके अलावा पहाड़ों में खेती नुकसान होने के डर से लोगों ने शहरों की ओर रुख कर लिया है। अल्मोड़ा और पौड़ी में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। पलायन के वजह से ना तो शिक्षा व्यवस्था सुधर पाई ना ही चिकित्सा व्यवस्था। इन सभी के बीच एक हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे है जिसने अपनी मां और धरती मां की सेवा के लिए लाखों रुपए की नौकरी छोड़ दी। 17 साल दिल्ली रहा लेकिन अपनी भूमि के लिए प्यार कम नही हुआ। दन्यां के रहने वाले प्रेम गोविंद गोपाल तीन साल पहले अपना पूरा परिवार दिल्ली छोड़कर गांवव वापस आ गए। उनकी पत्नी दिल्ली में नौकरी करती है वही बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है।  सीनियर मैनेजर की नौकरी छोड़कर गांव में बंजर खेतों को आबाद करने में लग गए।

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दन्यां के रहने वाले गोंविंद ने गांव से ही अपनी पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने लोहाघाट से पॉलीटेक्निक किया और फिर  फिर थापर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट पटियाला से बीटेक की डिग्री हासिल कर ली। बीटेक के बाद उनकी नौकरी लगी और फिर वो  मल्टी नेशनल कंपनी के सीनियर मैनेजर पद तक पहुंच गए। लाखों कमाने के बाद भी गांव के प्रति उनका प्यार कम नहीं हुआ। 10 साल पहले गोविंद के पिता का निधन हो गया। गांव में उनकी मां भाई लोगों के साथ रहने लगी। गोविंद के दो भाई है। कुछ साल पहले किसी बीमारी के चलते बड़े भाई की भी मौत हो गई। एक भाई बाहर नौकरी करता है। पति और बेटे की मौत के बाद मां गांव में अकेली हो गई। मां के साथ बहन थी लेकिन वो मानसिक रूप से अक्षम है। अकेली रह गई थी। मां को अकेला और खेतों को बंजर होता देख गोविंद ने गांव वापस जाने का फैसला किया। उन्होंने साल 2015 में लाख रुपए की नौकरी छोड़ दी और गांव की जमीन (33 नाली) में खेती शुरू कर दी।

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गोविंद गोपाल ने ग्राम्या योजना के तहत खेती के लिए हाथ से चलाने वाला ट्रैक्टर लिया। इसके सहारे उन्होंने बंजर खेतों को एक बार फिर आबाद कर दिया। वो अपने खेतों में पिछले दो-तीन सालों से वह अपने खेतों में हल्दी, अदरक, टमाटर, बीन, हरी सब्जियां आदि के अलावा ब्राह्मी, माल्टा, नीबू, कागजी नीबू आदि उगा रहे हैं। वो उस फसल की खेती कर रहे है जिन्हे जानवार कम नुकसान पहुंचाते है। खेती से वह परिवार के गुजारे के साथ ही वह हर साल हजारों की कमाई भी कर रहे हैं। उन्होंने उन्नत नस्ल की गाय भी पाल रखी है। इसके लिए चारा जुटाने का काम भी गोविंद खुद करते हैं।

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गोविंद गोपाल कहते है कि खेती के दौरान उन्होंने सरकारी व्यवस्था का फायदा गलत लोगों द्वारा उठाया जा रहा है। उन्होंने  कहा कि  काश्तकारों के लिए चलाई जा रही कृषि और उद्यान से संबंधित तमाम अनुदान और ऋण योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को नहीं मिल पा रहा है। योजनाओं का फायदा राजनीतिक दलों के वे कार्यकर्ता उठा रहे हैं जो वास्तव में कुछ और कार्य करते हैं, लेकिन सरकारी मशीनरी के सहयोग से कागजों में वह खुद को काश्तकार दर्शा कर गरीबों का हक छीन रहे हैं। सरकार के पास सही आंकड़े नहीं पहुंच रहे हैं क्योंकि सर्वेक्षण करने वाले राजस्व कर्मी गांव आकर आंकड़े जुटाने के बजाय लापरवाही करते हैं और काल्पनिक आंकड़े भेज देते हैं। सूखा और अतिवृष्टि  के भी आंकड़े गलत होते है। उनका यह भी कहना है कि सरकारी योजनाओं को सही ढंग से लागू किया जाए और गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा और कानून व्यवस्था की स्थिति को अच्छा किया जाए तो महानगरों से तमाम लोग अपने गांव लौटना चाहेंगे।

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