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देवभूमि स्पेशलः नंदादेवी के घर में महान कवि महादेवी वर्मा

भवाली:नीरज जोशी: पंकज जीना : हिमालय के साथ भारतीय साहित्य, संस्कृति और ज्ञान का गहरा सम्बन्ध रहा है। सौंदर्य को देखते हुए हिमालय के आँचल में लौकिक और आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त होती है। इसी से यहाँ यक्ति या किसी संस्था की स्थिति अपने आप में एक सिद्धि है। ज्ञान के अनेक केंद्र देवभूमि उत्तराखण्ड में है, परंतु ऐसे साहित्य संस्कृति केंद्र की उपेक्षा यहाँ स्वभाविक थी, जिसमें सभी क्षेत्रों के यक्ति एकत्र होकर अपने सपनो को सामंजस्यपणा आकार दे सके। बात उस महान देवी महादेवी वर्मा की है। जो वर्ष 1934 में 27 साल की उम्र में अपने कविता संग्रह ‘ नीरजा’ के लिए सेकसरिया पुरस्कार प्राप्त हुआ। उसके तुरंत बाद ही वह इलाहाबाद से बद्रीनाथ की यात्रा पर निकली। काठगोदाम से पैदल यात्रा कर भीमताल होते हुए उन्होंने रामगढ़ में रात्रि विश्राम किया। सुबह होने पर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि अर्ध चंद्राकार सरांखलाओ से घिरा रामगढ़ गांव आध्यात्मिक माहौल के बीचों बीच मानों आमन्त्रित कर रहा हो।

 

 

कुमाऊँ विश्वविद्यालय रामगढ़ महादेवी सर्जन पीठ में मानों आज भी महादेवी मौजूद है। सरकार ने 13 जुलाई 2004 में कुमाऊं विश्वविद्यालय को महादेवी वर्मा सर्जन पीठ अपने अंदर लेने को कहा। IMG-20170419-WA0021 (1)महादेवी वर्मा सर्जन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने हल्द्वानीलाइव को बताया कि 2005 से इसे सुचारू रूप से चलाया जा रहा है। रामगढ़ छेत्र अतीत में रहस्यमय हिमालय की अनेक स्मरतियो को अपने आप में समेटे हुए है। उन्होंने बताया महादेवी वास्तव में इस संसार से अवश्य परिचित रही होंगी। क्योंकि हिमालय के उसी प्रभाव को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने 1963 में समस्त भारतीय भाषाओ में लिखी गयी कविताओं का ऐतिहासिक संकलन ‘हिमालय’ संपादित किया। इसीलिए वह समुद्र सतह से दो तीन सौ मीटर की उचाई पर शिवालिक पर्वत की श्ररखलाओ के बीच से गुजरते हुए जब वह 2000 मीटर की ऊँचाई में बाज,देवदार,काफल बुरांश चीड़ आदि वृक्षो के बीच से होकर गागर पहुंची तो उन्हें कुमाऊँ की कुल देवी नंदा के अनेक रूप दिखाई दिए होंगे। शोध अधिकारी ने बताया की बदरीनाथ की यात्रा से लौटते हुए महादेवी वर्मा ने रामगढ़ की एक पहाड़ी देविधार में अपनी प्रिय कवित्री मीराबाई की स्म्रति में एक घर बनवाया। जिसे मीरा कुटीर नाम दिया। जहाँ वे 1937 से 1960 के दसक में गर्मियों में नियमित आने लगी। और 1939 में जब वह पैदल केदारनाथ की यात्रा पर निकली रामगढ़ व आस पास के क्षेत्रों में उन्होंने स्त्रियों को अपने परिवेश के प्रति जागरूक किया। और आर्थिक दृष्टी से स्वालंबी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की। यही 1942 में अपनी चर्चित कविता ‘दीपशिखा’ व कई कविताएं लिखी। और कई चित्र बनाये।

mahadevi verma's belongings

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नीरजा, रस्मी, नीहार कई कविताएं लिख दी गई थी। उन्होंने बताया आज भी हमारे पास उनके इस्तेमाल किये बर्तन और जिस पर उन्होंने अपनी कविताओं की रचना की वह डेस्क सब मौजूद है। उन्होंने कहा 1960 के दसक में जब महादेवी यहाँ आई तो यहाँ के ग्राम प्रधान से उन्होंने 10 रुपए साल के लिए भूमि ली और अपनी कविताओ को यहाँ रहते हुए पूरा किया। उन्होंने बताया महादेवी वर्मा के रचनात्मक जीवन में बड़े और नए उदय का विषय मीरा कुटीर ही रहा है इसी घर में आने के बाद हिमालय पार के आद्यात्मिक एवं रहस्यमय परिवेश से हटकर उनकी रचनाओ का स्वर धरती की वास्तविकताओं की ओर लौटा। और धरती पर रहने वाले हाड मांश के लोगों की कथा को उन्होंने अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। आज भी उनके चरित्रो की स्म्रतियां मीरा कुटीर के आस पास महसूस की जा सकती है। उन्होंने कहा भारतीय साहित्य में महादेवी ही एक ऐसी लेखिका रही है जिन्होंने कई संस्थाए खोली है

 

नैनीताल में हुई गांधी जी से मुलाकात

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वह पहली बार 1929 में नैनीताल आई थी और ताकुला में गाँधी जी से मिली थी। उन्ही की प्रेरणा से वह धर्म व समाज सेवा से जुड़ी। रावत ने बताया उन्होंने इस भवन को एक आकार दिया है। और भवन की वास्तुकला उनकी कल्पना पर आधारित है। मीरा कुटीर में हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओ के अनेक ख्यातिप्राप्त रचनाकार ठहरे है। और कुछ ने अपनी मूल्यवान रचनायें यही रहकर रची है। IMG-20170419-WA0013और हर साल महादेवी सृजन पीठ में 26 मार्च को कई कार्यक्रमों के द्वारा महादेवी वर्मा की जन्मशताब्दी के रूप में मनाया जाता है। मोहन सिंह रावत ने बताया की वह 10 सालो से सृजन पीठ को संभाल रहे है और हर साल 26 मार्च को महादेवी के जन्म के रूप में मनाते है। जिसमे कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति हिन्दी विभाग के अध्य्क्ष व कई हिन्दि प्रोफेसर्स और कई स्कूलों के बच्चे रहते है। उन्होंने कहाः हर साल की तरह इस बार भी 26 मार्च को महादेवी का जन्म शताब्दी मनाई गई और मुक्ति बोध की संगोश्ठी भी की गयी। जिसमे ज्ञान पीठ पुरस्कार लीलाधर जगूड़ी, अनिल कार्की,आरूढ़ कमल डॉ सिदेस्वर,  डॉ शैलेश मेटयानि गढ़वाली लेखक हिंदी विभागो के लेख़क व पाठक वर्ग हमेसा भागीदार रहे है। सृजन पीठ का उद्देश्य युवाओं को अपनी संस्कृति से जोड़ना है। उन्होंने कहा हमारे पुस्तकालय सृजन पीठ में वो पत्रिकाये भी है जो कही नही मिलती। कुल पाँच लॉख मूल्य तक किताबे सर्जन पीठ में है। और पुस्तकालय हर किसी के लिए खुला हुआ है।

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