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टूर ऑफ ड्यूटीः सेना क्यों युवाओं को तीन साल की इंटर्नशिप देना चाहती है? जानिए

टूर ऑफ ड्यूटीः सेना क्यों युवाओं को तीन साल की इंटर्नशिप देना चाहती है? जानिए

नई दिल्लीः सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने वाले युवकों के सपनों को एक नई उड़ान मिलने वाली है। सेना में भर्ती होने का सपना देख रहे युवकों के लिए एक बहुत अच्छी खबर सामने आई है। सेना की ओर से दिया गया तीन साल सेवा का ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ प्रस्ताव युवा पीढ़ी में जबर्दस्त उत्सुकता जगाएगा। इसे उन युवाओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है जो सैन्य सेवाओं का रोमांच तो महसूस करना चाहते हैं, लेकिन अपना जीवन सेना तक ही सीमित नहीं रखना चाहते।

बता दें कि प्रस्ताव यह है कि अर्हता-पात्रता की सीमाओं को पार करने और एक निश्चित प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने के बाद लोग तीन साल तक सेना को अपनी सेवाएं दें। और फिर अलग करियर अपना कर नागरिक जीवन में इस अनुभव का लाभ उठाएं। इजराइल जैसे कुछेक देशों में न्यूनतम सैन्य प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाया गया है। लेकिन यहां इस प्रस्ताव का स्वरूप पूरी तरह ऐच्छिक है।

सेना ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिस स्तर की भर्ती के लिए जो भी पात्रताएं तय हैं, उनमें कोई ढील नहीं दी जाएगी। यह सावधानी इसलिए जरूरी है कि बड़ी संख्या में और कम अवधि के लिए लोगों का आना सेना की कार्य संस्कृति के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। इस प्रस्ताव का एक फायदा यह भी बताया जा रहा है कि लंबी अवधि में इससे सैनिकों के वेतन, पेंशन और ग्रैच्युटी आदि पर आने वाले खर्च में कमी आएगी।

सवाल सेना के मनोबल और कौशल का हो तो खर्च को किसी बदलाव का महत्व नापने की कसौटी नहीं बनाया जा सकता, लेकिन अगर सारी जरूरतें पूरी करने के बाद भी इससे खर्च कुछ कम होता हो तो इसको आजमाने में कोई हर्ज नहीं है। यह जरूर है कि उच्च तकनीकी और ऑटोमेशन के इस युग में दुनिया का जोर सैन्य बलों की संख्या कम करके उनका तकनीकी कौशल और मैदानी दक्षता बढ़ाने पर है। उनका लक्ष्य ऐसे स्मार्ट सैनिक विकसित करने का है, जो कई स्रोतों से आ रही सूचनाओं का उपयोग करते हुए अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों के बल पर अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम दे सकें।

इसके प्रस्ताव के चलते कुछ लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि भारतीय सेना तीन-तीन साल के लिए युवाओं को शामिल करके कौशल से ज्यादा संख्या को महत्व देने की गलती तो नहीं कर रही। लेकिन सेना ने ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ का प्रस्ताव स्थायी ऑफिसरों और सैनिकों की जगह लेने के लिए नहीं दिया है। मौजूदा प्रस्ताव के उद्देश्य और उसकी सीमाओं को ध्यान में रखें तो यह सेना के साथ-साथ नागरिक समाज के लिए भी काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

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