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हर दिल की तमन्ना गैरसैंण बने उत्तराखंड की स्थाई राजधानी

हल्द्वानी: उत्तराखंड के निर्माण के सपना जब आंदोलनकारियों ने देखा था तो पहाड़ की राजधानी पहाड़ी इलाके के साथ देखा था। उनका मानना था कि राज्य की राजधानी पहाड़ी क्षेत्र होगा तो वहां के विकास का मार्ग खुलेगा। राज्य को बने 20 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी राजधानी का मसला सुलझा नहीं है। देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया गया था और गैरसैण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग अभी भी जारी है। वैसे अब गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया है लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों से लोगों ने इस फैसले का विरोध किया है। लोगों ने सरकार के फैसले को बहाना बताया है जिसने ये फैसले राजनीतिक फायदे के लिए लिया है।

लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय हल्दूलौड़ के पूर्व छात्रसंघ कोषाध्यक्ष मुकेश जोशी ने कहा कि क्या आप किसी को सपनों के साथ समझौता करने के लिए कह सकते हैं नहीं ना… तो उस सपने का क्या होगा जो गैरसैण को स्थाई राजधानी के रूप से देखना चाहता है। यह केवल एक समूह का ही नहीं बल्कि हर उत्तराखंड़ी का सपना है। गैरसैण राज्य की राजधानी होती तो शायद पलायन की बीमारी राजधानी को इतना ज्यादे जख्म नहीं देती।

सरकार ने ग्रीष्मकाल और शीतकाल के नाम पर जनता के सिर पर दो राजधानी का बोझ डाल दिया है। स्थायी राजधानी देहरादून है या गैरसैंण इस सम्बंध में सरकार चुप्पी साधे हुए है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में भी डेढ़ दशक पूर्व ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन राजधानी का प्रयोग हो चुका है। वहां तत्कालीन भाजपा की सरकार ने धर्मशाला को शीतकालीन राजधानी बनाया और बाद में कांग्रेस की सरकार ने विधानसभा भवन बनाकर सत्र की शुरूआत की।

सर्दियों में कुछ दिनों के लिए चलती-फिरती सरकार धर्मशाला चली जाती है और विधानसभा का एक सत्र वहां कर लिया जाता है, लेकिन आज तक राजधानी के तौर पर एक बड़ी पहचान धर्मशाला को हासिल नहीं हो पाई है। ऊपर से सरकार पर खर्च का बोझ बढ़ गया है। दो राजधानी के मामले में हिमाचल प्रदेश विफल मॉडल रहा है। इसी मॉडल को उत्तराखंड सरकार ने भी अपनाया है। उन्होंने कहा कि इस मुहीम से जुड़ा हर व्यक्ति गैरसैण को राज्य की स्थाई राजधानी के रूप से देखना चाहता है।

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