हल्द्वानी: जब बल्लेबाज़ी में अगला नंबर महेंद्र सिंह धोनी का होता था, तब कभी किसी भी बल्लेबाज के आउट होने का कोई दुख मुझे कभी नहीं हुआ। ये सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उसकी बल्लेबाज़ी देखनी होती थी, बल्कि इसलिए भी कि मैदान में कदम रखने का वो अंदाज़, गज़ब, क्या ही कहने।
सधे हुए और आगे बढ़ते वो कदम, वो हष्ट पुष्ट एथलीट वाले पैर, और उन पैरों पर वो फेडेड पैड्स। एक बाजू में दबा हुआ बल्ला और एक हाथ से बाखूबी दूसरे हाथ को ग्लवस पहनाते वो चौड़ी कलाई के मजबूत हाथ। वही ग्लव्स जो हर गेंद खेलने के बाद बार बार सही करने पड़ते थे क्योंकि इतनी ताकत से मारे गए शॉट्स के बाद ढीले हो जाते थे।
मैदान में एंट्री करते ही सारे हो हल्ले के बीच उसका वो पिच को देखते हुए आगे बढ़ते जाना, हर आवाज़ को नज़र अंदाज़ करते हुए जैसे वो सिर्फ खेलने आया है और किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता उसको। हर गेंद के बाद नॉन स्ट्राइकर तरफ से आगे आ कर बल्ला पटकना और स्ट्राइकर बल्लेबाज को गेंदबाज की अगली रणनीति से अवगत कराना, मानो हर गेंद के बारे में सब नहीं लेकिन कुछ ना कुछ ज़रूर पता है उसे।
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मुझे याद है स्ट्राइक अपने पास होने पर होने पर गेंद के आने से पहले, विकेट के साइड में खड़े हो जाना, बल्ले को हाथों के जरिए कंधे पर रख कर, नाक और भौवें सिकोड़ते हुए सारे मैदान पर सजे फील्डर्स को एक नजर देखना और शॉट पर शॉट मारना, वो क्षण वो पल मेरी आंखों से कभी ओझल नहीं हो सकते। ना मैं होने देना चाहता हूं।
हेलीकाप्टर शॉट, अतरंगी कवर ड्राइव, पुल शॉट, आखिर बॉल पर छक्का लगाना, कम गेंदों पर ज़्यादा रन चाहिए हों फिर भी बिना प्रेशर के मैच फिनिश कर के आना। हां, हो सकता है वो बेस्ट बैट्समैन नहीं, लेकिन बैस्ट फिनिशर तो वो है, था और हमेशा रहेगा। भारत को असंख्य मैच जिता कर गया है वो, चाहे अपनी बल्लेबाज़ी से, अपने कप्तानी से, अपने विकेटकीपिंग से या अपने ठंडे ठंडे दिमाग की बदौलत।
विकेटकीपर ऐसा कि हर रिव्यू सफल, हर कैच, हर स्टंपिंग सफल। कप्तान कोई भी हो लेकिन मदद तो उससे ही मांगी गई है हमेशा। अब चाहे वो फिल्डिंग लगानी हो, गेंदबाज को चुनना हो, किसको क्या कहना है कैसे खिलाना है, वगैरह वगैरह।
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जैसा कि जग जानता है कि उसके हाथों में बिजली है, कौंधता है वो जैसे ही बल्लेबाज अपनी क्रीज और गेंद छोड़ते हैं। सेकेंड्स नहीं लगते सेकेंड्स, बेल्स उड़ाने में। वर्तमान के विकेटकीपर जैसे डी कॉक, बटलर तक उसको अपना गुरु मानते हैं। मुझसे कोई कहे तो सिर्फ विकेटकीपिंग करते हुए भी मैं उसे सालों साल देख सकता हूं।
कप्तानी, वो कप्तान नहीं है लीडर है, टी 20 वर्ल्ड कप 2007, 50 ओवर वर्ल्ड कप 2011, चैंपियंस ट्रॉफी 2013। अकेला कप्तान जिसने ICC के तीनों टूर्नामेंट अपने नाम किए। रोहित शर्मा, विराट कोहली, जडेजा जैसे बेहतरीन खिलाड़ी उसकी तारीफ करते नहीं थकते। वो है मेरा फेवरेट।
कोई ऐसा वैसा नहीं, महेंद्र सिंह धोनी, मेरा माही है मेरा फेवरेट, उसे देखते हुए मैं कभी बोर नहीं हो सकता। जैसा कि डी विलियर्स ने हाल ही में कहा था कि धोनी 80 साल के भी हो जाएं, तब भी मैं बेझिझक उन्हें अपनी पहली 11 में उतारने के लिए तैयार हूं। वैसा ही मैं हूं कितनी उम्र में भी धोनी खेलेगा, मैं देखूंगा।
हर छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी चीज़ याद है मुझे उसकी, हर चीज़ फॉलो करता हूं मैं। उसके शॉट्स से, उसकी पारी देखने भर से बुरा दिन, अच्छे दिन में तब्दील हो जाता है मेरा। हर एक चीज़, हर चीज़ पसंद है मुझे उसकी और 2011 वर्ल्ड कप का वो फाइनल छक्का, जब भी देखता हूं, आज भी आंसू नहीं रुकते और शरीर का हर अंग चीखने पर मजबुर हो जाता है खुशी से, रौंगटे खड़े हो जाते हैं मेरे।
हालांकि अंत्तराष्ट्रीय स्तर पर से तो धोनी युग उसके संन्यास के साथ खत्म हो गया। लेकिन धोनी ऐसा इतिहास ज़रूर रच गया है जिसे पढ़ते हुए करोड़ों युवा उस जैसा बनने की सोचेंगे। हर कई यूं ही नहीं कहता उस जैसा खिलाड़ी कभी नहीं आएगा दोबारा। खैर अब तो सिर्फ आइपीएल ही एक सहारा रह गया है उसे जी भर कर देखने का। इंतजार है उसे दोबारा मैदान पर खेलते देखने का।
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